श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
दैवासुर संपद्विभाग योग
(आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का कथन)
आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः।
ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान्।।12।।
कामी, क्रोधी, लालची बंधे आश के जाल
धन संचय, अन्याय से होने को खुशहाल ।।12।।
भावार्थ : वे आशा की सैकड़ों फाँसियों से बँधे हुए मनुष्य काम-क्रोध के परायण होकर विषय भोगों के लिए अन्यायपूर्वक धनादि पदार्थों का संग्रह करने की चेष्टा करते हैं ।।12।।
Bound by a hundred ties of hope, given over to lust and anger, they strive to obtain by unlawful means hoards of wealth for sensual enjoyment.।।12।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८