श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय १७
(आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेद)
मनः प्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।
भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते।।16।।
मन प्रसन्नता, सौम्यता, मौन, आत्म अवलंब
शुद्ध विचार, पवित्रता, मानस तप के अंग।।16।।
भावार्थ : मन की प्रसन्नता, शान्तभाव, भगवच्चिन्तन करने का स्वभाव, मन का निग्रह और अन्तःकरण के भावों की भलीभाँति पवित्रता, इस प्रकार यह मन सम्बन्धी तप कहा जाता है।।16।।
Serenity of mind, good-heartedness, purity of nature, self-control-this is called mental austerity.।।16।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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