श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय १७
(आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेद)
(ॐ तत्सत्के प्रयोग की व्याख्या)
यज्ञे तपसि दाने च स्थितिः सदिति चोच्यते।
कर्म चैव तदर्थीयं सदित्यवाभिधीयते।।27।।
यज्ञ, तपस्या दान भी ‘सत‘ के ही स्थान
उस निमित्त हर कार्य का भी ‘सत‘ ही अभिधान ।।27।।
भावार्थ : तथा यज्ञ, तप और दान में जो स्थिति है, वह भी ‘सत्’ इस प्रकार कही जाती है और उस परमात्मा के लिए किया हुआ कर्म निश्चयपूर्वक सत्ऐसे कहा जाता है।।27।।
Steadfastness in sacrifice, austerity and gift, is also called Sat, and also action in connection with these (or for the sake of the Supreme) is called Sat.।।27।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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