श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय 18
(सन्यास योग)
निश्चयं श्रृणु में तत्र त्यागे भरतसत्तम ।
त्यागो हि पुरुषव्याघ्र त्रिविधः सम्प्रकीर्तितः ।।4।।
किंतु इसी संदर्भ में , मेरा मत सुन पार्थ !
त्याग भी तीन प्रकार का ,कहा गया है तात ।।4।।
भावार्थ : हे पुरुषश्रेष्ठ अर्जुन ! संन्यास और त्याग, इन दोनों में से पहले त्याग के विषय में तू मेरा निश्चय सुन। क्योंकि त्याग सात्विक, राजस और तामस भेद से तीन प्रकार का कहा गया है।।4।।
Hear from Me the conclusion or the final truth about this abandonment, O best of the Bharatas; abandonment, verily, O best of men, has been declared to be of three kinds!।।4।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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