श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18  

(सन्यास   योग)

एतान्यपि तु कर्माणि सङ्‍गं त्यक्त्वा फलानि च ।

कर्तव्यानीति में पार्थ निश्चितं मतमुत्तमम्‌ ।।6।।

किंतु ये भी सब कर्म हो, त्याग आश अनुराग

किये जायें निश्चित सदा, मेरे मत का राग ।।6।।

 

भावार्थ :  इसलिए हे पार्थ! इन यज्ञ, दान और तपरूप कर्मों को तथा और भी सम्पूर्ण कर्तव्यकर्मों को आसक्ति और फलों का त्याग करके अवश्य करना चाहिए, यह मेरा निश्चय किया हुआ उत्तम मत है।।6।।

But even these actions should be performed leaving aside attachment and the desire for rewards, O Arjuna! This is My certain and best conviction.।।6।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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