श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय 18
(सन्यास योग)
दुःखमित्येव यत्कर्म कायक्लेशभयात्त्यजेत् ।
स कृत्वा राजसं त्यागं नैव त्यागफलं लभेत् ।।8।।
कष्टदायी हैं कर्म ये, देह को पीड़ा दायी
इससे हैं ये त्याज्य, यह कहते ज्ञान अनुयायी।।8 अ।।
यह है बुद्धि की मूर्खता, नहीं त्याग फल लाभ
सिर्फ पलायन वाद है जीवन हित अभिशाप ।।8ब।।
भावार्थ : जो कुछ कर्म है वह सब दुःखरूप ही है- ऐसा समझकर यदि कोई शारीरिक क्लेश के भय से कर्तव्य-कर्मों का त्याग कर दे, तो वह ऐसा राजस त्याग करके त्याग के फल को किसी प्रकार भी नहीं पाता।।8।।
He who abandons action on account of the fear of bodily trouble (because it is painful), he does not obtain the merit of renunciation by doing such Rajasic renunciation.।।8।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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