श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय 18
(सन्यास योग)
कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेअर्जुन ।
सङ्गं त्यक्त्वा फलं चैव स त्यागः सात्त्विको मतः ।।9।।
निर्धारित सब कर्म तो पार्थ कार्य रूचि साथ
फल इच्छा को त्याग कर करना ही है त्याग ।।9।।
भावार्थ : हे अर्जुन! जो शास्त्रविहित कर्म करना कर्तव्य है- इसी भाव से आसक्ति और फल का त्याग करके किया जाता है- वही सात्त्विक त्याग माना गया है।।9।।
Whatever obligatory action is done, O Arjuna, merely because it ought to be done, abandoning attachment and also the desire for reward, that renunciation is regarded as Sattwic!।।9।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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