श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
दैवासुर संपद्विभाग योग
(आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का कथन)
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः।
न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते।।7।।
असुरो में न पवित्रता, दया न शुभ आचार
सत्य से कोसो दूर रह, करते पापाचार ।।7।।
भावार्थ : आसुर स्वभाव वाले मनुष्य प्रवृत्ति और निवृत्ति- इन दोनों को ही नहीं जानते। इसलिए उनमें न तो बाहर-भीतर की शुद्धि है, न श्रेष्ठ आचरण है और न सत्य भाषण ही है।।7।।
The demoniacal know not what to do and what to refrain from; neither purity nor right conduct nor truth is found in them.।।7।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८