श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
त्रयोदश अध्याय
(ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय)
य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणैः सह ।
सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते ।।23।।
जिसे इस तरह पुरूष, गुण और प्रकृति का ज्ञान
उसके लिये जहाँ भी हो, पुर्नजन्म न विधान।।23।।
भावार्थ : इस प्रकार पुरुष को और गुणों के सहित प्रकृति को जो मनुष्य तत्व से जानता है (दृश्यमात्र सम्पूर्ण जगत माया का कार्य होने से क्षणभंगुर, नाशवान, जड़ और अनित्य है तथा जीवात्मा नित्य, चेतन, निर्विकार और अविनाशी एवं शुद्ध, बोधस्वरूप, सच्चिदानन्दघन परमात्मा का ही सनातन अंश है, इस प्रकार समझकर सम्पूर्ण मायिक पदार्थों के संग का सर्वथा त्याग करके परम पुरुष परमात्मा में ही एकीभाव से नित्य स्थित रहने का नाम उनको ‘तत्व से जानना’ है) वह सब प्रकार से कर्तव्य कर्म करता हुआ भी फिर नहीं जन्मता ।।23।।
He who thus knows Spirit and Matter, together with the qualities, in whatever condition he may be, he is not reborn.।।23।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर