आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – चतुर्थ अध्याय (1) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्थ अध्याय

( सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय )

 

श्री भगवानुवाच

इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्‌ ।

विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्‌ ।।1।।

भगवान बोले-

मैने पहले अमर योग यह विवस्वान को बतलाया

विवस्वान ने मनु को ,मनु ने इक्ष्वाकु को समझाया।।1।।

      

भावार्थ :  श्री भगवान बोले- मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा।।1।।

 

I taught this imperishable Yoga to Vivasvan; he told it to Manu; Manu proclaimed it to Ikshvaku. ।।1।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)