श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

( भक्ति योग का विषय )

 

अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः ।

तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनीः ।।14।।

 

अन्य न कुछ भी सोच जो नित मुझे करता याद

उसको पार्थ ! सुलभ हूँ मैं नित्य युक्त संवाद।।14।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! जो पुरुष मुझमें अनन्य-चित्त होकर सदा ही निरंतर मुझ पुरुषोत्तम को स्मरण करता है, उस नित्य-निरंतर मुझमें युक्त हुए योगी के लिए मैं सुलभ हूँ, अर्थात उसे सहज ही प्राप्त हो जाता हूँ।।14।।

 

I am easily attainable by that ever-steadfast Yogi who constantly and daily remembers mee (for a long time), not thinking of anything else (with a single or one-pointed mind), O Partha (Arjuna)!।।14।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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