श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
पुरूषोत्तम योग
(संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय)
(क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम का विषय)
यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः ।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः।।18।।
क्षर-अक्षर से अलग मै हूं सबसे उत्तम
इसीलिये जग, वेद में ज्ञात मै पुरूषोत्तम ।।18।।
भावार्थ : क्योंकि मैं नाशवान जड़वर्ग- क्षेत्र से तो सर्वथा अतीत हूँ और अविनाशी जीवात्मा से भी उत्तम हूँ, इसलिए लोक में और वेद में भी पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ।।18।।
As I transcend the perishable and am even higher than the imperishable, I am declared as the highest Purusha in the world and in the Vedas।।18।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८