श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
नवम अध्याय
( सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन )
तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च ।
अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ।।19।।
तपता मैं ही सूर्य बन करता घन निर्माण
अमर भी हूँ पर मृत्यु भी ,हूँ जीवन का प्राण।।19।।
भावार्थ : मैं ही सूर्यरूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ। हे अर्जुन! मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत्-असत् भी मैं ही हूँ।।19।।
(As the sun) I give heat; I withhold and send forth the rain; I am immortality and also death, existence and non-existence, O Arjuna!।।19।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर