हेमन्त बावनकर
☆ ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ अविराम 1111 – श्री संजय भारद्वाज ☆ हेमन्त बावनकर ☆
अविराम 1111 👈 एक शब्द और एक अंक मात्र ही नहीं, अपने आप में एक वाक्य भी है। “अविराम 1111″ इस वाक्य की पूर्णता में परम आदरणीय श्री संजय भरद्वाज जी का अविराम चिंतन, अध्यात्म, संवेदनशीलता और हमारे प्रबुद्ध पाठकगण का प्रतिसाद एवं स्नेह है जिसने श्री संजय जी की अविराम लेखनी को सतत ऊर्जा प्रदान की है।
ई-अभिव्यक्ति मात्र एक मंच है जिसके माध्यम से प्रतिदिन प्रबुद्ध लेखक गण अपने संवेदनशील अथाह सागर रूपी हृदय – मानस से शब्दों को पिरोकर अपनी अविराम लेखनी से सकारात्मक सत्साहित्य आप तक सम्प्रेषित करने का प्रयास करते हैं। ई-अभिव्यक्ति का अस्तित्व श्री संजय भारद्वाज जी जैसे सुहृदय लेखक एवं आप जैसे प्रबुद्ध पाठकों के बिना असंभव है।
आज जब अविराम 1111 के इतिहास के पन्नों में विगत अविराम 1111 और भविष्य के अविराम पृष्ठों को पढ़ने का प्रयास करता हूँ तो पाता हूँ कि मुझे श्री दीपक करंदीकर जी (महाराष्ट्र साहित्य परिषद, पुणे) के माध्यम से अप्रैल 2019 के प्रथम सप्ताह में श्री संजय भारद्वाज जी एवं उनके साहित्यिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक विश्व से सम्बद्ध होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। उनसे मोबाईल पर बात हुई, आगे भी बात होती रही किन्तु, उनसे मिलने का संयोग 14 जून 2022 की शाम कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी (अनुवाद विशेषज्ञ एवं हिंदी/संस्कृत/अंग्रेजी/उर्दू के ज्ञाता) के निवास पर श्री बालेन्दु शर्मा दाधीच जी (प्रसिद्ध प्रौद्योगिकीविद, निदेशक-स्थानीय भाषाएँ और सुगम्यता, माइक्रोसॉफ़्ट) एवं श्री अश्विनी कुमार जी (पूर्व कार्यक्रम अधिकारी, मुम्बई दूरदर्शन) के साथ परम पिता परमेश्वर ने निर्धारित किया हुआ था। तीन वर्षों से मोबाईल पर चर्चा से जो मस्तिष्क में छवि बनी थी वह साकार हो गई। एक संवेदनशील, सुहृदय साहित्यकार गुरु सदृश्य मित्र की जैसी कल्पना की थी शत प्रतिशत उनको वैसा ही पाया।
संयोगवश आपसे ई-अभिव्यक्ति में प्रकाशित संजय भारद्वाज जी की रचनाओं के कुछ महत्वपूर्ण लिंक्स साझा करना चाहूंगा जिनपर क्लिक कर आप उनकी रचनाएँ पढ़ सकते हैं –
प्रथम प्रकाशित आलेख 16 अप्रैल 2019 >>
👉 हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ बिन पानी सब सून ☆ – श्री संजय भारद्वाज –
संजय उवाच का प्रथम प्रकाशित आलेख 15 जून 2019
👉 हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ संजय उवाच – #1 ☆ – श्री संजय भारद्वाज –
संजय उवाच के स्तरीय साहित्य से मानस बना कि – भला प्रतिदिन जीवन के महाभारत से जूझते हुए संजय उवाच साप्ताहिक कैसे हो सकता है। श्री संजय जी से अनुरोध किया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया और संजय दृष्टि शीर्षक से आज के संजय की दृष्टि ने अपनी रचनाओं को आपसे प्रतिदिन अविराम साझा करना प्रारम्भ कर दिया… एक भगीरथ प्रयास की तरह …
संजय दृष्टि का प्रथम प्रकाशित आलेख 25 जुलाई 2019 से अविराम
👉 हिन्दी साहित्य – आलेख – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – हरापन ☆ – श्री संजय भारद्वाज –
मुझे आपसे यह भी साझा करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि ई-अभिव्यक्ति ने विगत 7 अगस्त 2022 को संजय उवाच का 150वां अंक प्रकाशित किया है।
👉 हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 150 ☆ अतिलोभात्विनश्यति – 2☆ श्री संजय भारद्वाज ☆
अध्यात्म, संवेदनशील चिंतन और साहित्य को हम अपने जीवन से विलग नहीं कर सकते और श्री संजय जी की परिकल्पना के अनुरूप साहित्य की विभिन्न विधाओं, रंगमंच, समाजसेवा, प्रवचन को साकार करने हेतु उनके हिंदी आंदोलन परिवार, आपदां अपहर्तारं, जाणीव – ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स के सकारात्मक प्रयासों को साधुवाद तो दे ही सकते हैं. इस यज्ञ में श्री संजय भारद्वाज जी की अर्धांगिनी परम आदरणीया सौ सुधा भारद्वाज जी को साधुवाद दिए बिना यह यज्ञ अधूरा होगा।
श्री संजय भारद्वाज जी से ई-अभिव्यक्ति की अविराम अपेक्षाएं हैं जिसके लिए हम समय समय पर आपसे संवाद जारी रखेंगे और उनके लिपिबद्ध विचार आप सबको सम्प्रेषित करते रहेंगे।
श्री संजय भारद्वाज जी की लेखनी पर माँ सरस्वती जी का आशीर्वाद ऐसा ही बना रहे, यह यात्रा नवीन और उच्चतम आयाम स्पर्श करती रहे, उनकी लेखनी अविराम चलती रहे… और आप सभी का प्रतिसाद-स्नेह प्राप्त होता रहे… बस इसी कामना के साथ
आपका अभिन्न
हेमन्त बावनकर,
पुणे (महाराष्ट्र)
10 अगस्त 2022
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
आदरणीय बावनकर जी, नि:शब्द हूँ। यह लेखन और प्रकाशन की साझा यात्रा है। आपके साथ और विश्वास के बिना यह संभव नहीं था। ईश्वर यह यात्रा बनाये रखें। 🙏🏻
धन्यवाद हेमंत सर 🙏 आपने बहुत अच्छा परिचय करवाया है संजय भारद्वाज जी का।
सुंदर!
निजी रूप से मेरा धन्यवाद स्वीकार करें प्रभा जी।
संजय जी एक सजग रचनाकार हैं।छोटी-छोटी बातें, घटनाएँ जिन पर हमारी नजर नहीं जाती,उन बातों पर भी एक पैनी नजर रखते हैं।उनके पास चीजों को देखने का अपना एक दृष्टिकोण है,नजरिया है जो कभी सामाजिक तो कभी, धार्मिक-आध्यात्मिक चिंतन के रूप में प्रस्फुटित होता रहता है।निरंतर गतिशील और जागरूक उनकी लेखनी शनैः -शनैःविशेष रूप से वैचारिक बनती जा रही है ।यही आज समय की माँग भी है। निष्पक्ष वैचारिक लेखकों की कड़ी में मुझे संजय जी सबसे आगे खड़े दिखाई देते हैं।उनकी लेखनी की यह सजगता और प्रखरता सदैव बनी रहे।
हार्दिक बधाई और अशेष शुभकामनाएँ।
रामहित यादव
नवी मुंबई
आदरणीय रामहित जी, आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ। बस इतना कह सकता हूँ कि मैं माध्यम भर हूँ। हृदय से धन्यवाद।
यह तो आपका बड़प्पन है।