ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 52 ☆ पिता का होना या न होना ! ☆ हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–52

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 52 ☆ पिता का होना या न होना !

प्रिय मित्रो,

किसी भी रिश्ते का एहसास उसके होने से अधिक उसके खोने पर होता है।

अनायास ही मन में विचार आया कि – साहित्य, सिनेमा और रिश्तों में ‘पिता’ को वह स्थान क्यों नहीं मिल पाया जो ‘माँ’ को मिला है? आखिर इसका उत्तर भी तो आप के ही पास है और आपकी संवेदनशीलता के माध्यम से मुझे उस उत्तर को सबसे साझा भी करना है।

जरा कल्पना कीजिये कैसा लगता होगा? जब किसी को समाचार मिलता है कि वह ‘पिता’ बन गया, ‘पिता’ नहीं बन सकता, बेटे का पिता बन गया, बेटी का पिता बन गया, दिव्याङ्ग का पिता बन गया, थर्ड जेंडर का पिता बन गया। फिर बतौर संतान इसका विपरीत पहलू भी हो सकता है। कैसा लगा है जब हम सुनते हैं – संतान ने पिता खो दिया या पिता ने संतान खो दिया।  यदि ‘पिता’ शब्द का संवेदनाओं से गणितीय आकलन करें तो उससे संबन्धित कल्पनीय और अकल्पनीय विचारों और संवेदनाओं के कई क्रमचय (Permutation) और संचय (Combination) हो सकते हैं। चलिये यह आपके संवेदनशील हृदय पर छोड़ते हैं।

आपसे बस अनुरोध यह कि – ‘पिता’ शब्द / रिश्ते पर आधारित आपकी सर्वाधिक प्रिय रचना साहित्य की किसी भी विधा में जैसे कविता / लघुकथा / कथा / आलेख और व्यंग्य (यदि हो तो)) ईमेल [email protected] पर प्रेषित करें।

शीर्षक / विषय – ‘पिता’

चित्र एवं संक्षिप्त जीवन परिचय (अधिकतम  250 शब्दों में)

अधिकतम शब्द – सीमा 1000 शब्द

भाषा – हिन्दी, मराठी एवं अङ्ग्रेज़ी

अंतिम तिथि – 10 मार्च 2021

साथ में  यह आशय कि –

रचना स्वरचित है। ई-अभिव्यक्ति को किसी भी माध्यम में प्रकाशित / प्रसारित करने का अधिकार / अनुमति है।  

यह कोई प्रतियोगिता नहीं अपितु आपकी संवेदनाओं को प्रबुद्ध पाठकों से साझा करने का प्रयास मात्र है और ई-अभिव्यक्ति ऐसे संवेदनशील प्रयोग हेतु कटिबद्ध है।  

आज बस इतना ही।

हेमन्त बावनकर

24 फ़रवरी 2021