आत्मकथ्य –
किसलय मन अनुराग (दोहा कृति) – डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
पुरोवाक्:
(प्रस्तुत है “किसलय मन अनुराग – (दोहा कृति)” पर डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’ जी का आत्मकथ्य। पुस्तकांश के रूप में हिन्दी साहित्य – कविता/दोहा कृति के अंतर्गत प्रस्तुत है एक सामयिक दोहा कृति “आतंकवाद” )
धर्म, संस्कृति एवं साहित्य का ककहरा मुझे अपने पूज्य पिताजी श्री सूरज प्रसाद तिवारी जी से सीखने मिला। उनके अनुभवों तथा विस्तृत ज्ञान का लाभ ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते मुझे बहुत प्राप्त हुआ। कबीर और तुलसी के काव्य जैसे मुझे घूँटी में पिलाए गये। मुझे भली-भाँति याद है कि कक्षा चौथी अर्थात 9-10 वर्ष की आयु में मेरा दोहा लेखन प्रारंभ हुआ। कक्षा आठवीं अर्थात सन 1971-72 से मैं नियमित काव्य लेखन कर रहा हूँ। दोहों की लय, प्रवाह एवं मात्राएँ जैसे रग-रग में बस गई हैं। दोहे पढ़ते और सुनते ही उनकी मानकता का पता लग जाता है। मैंने दोहों का बहुविध सृजन किया है, परंतु इस संग्रह हेतु केवल 508 दोहे चयनित किए गये हैं। इस संग्रह में गणेश, दुर्गा, गाय, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, वसंत, सावन, होली, गाँव, भ्रूणहत्या, नारी, हरियाली, माता-पिता, प्रकृति, विरह, धर्म राजनीति, श्रृंगार, आतंकवाद के साथ सर्वाधिक दोहे सद्वाणी पर मिलेंगे। अन्यान्य विषयों पर भी कुछ दोहे सम्मिलित किये गए हैं। इस तरह कहा जा सकता है कि इस संग्रह में सद्वाणी को प्रमुखता देते हुए इर्दगिर्द के विषयों पर भी लिखे दोहे मिलेंगे। मेरा प्रयास रहा है कि पाठकों को दोहों के माध्यम से रुचिकर, लाभदायक एवं दिशाबोधी संदेश पढ़ने को मिलें। जहाँ तक भाषाशैली एवं शाब्दिक प्रांजलता की बात है तो वह कवि की निष्ठा, लगन एवं अर्जित ज्ञान पर निर्भर करता है। यहाँ पर मैं यह अवश्य बताना चाहूँगा कि विश्व का कोई भी साहित्य लोक, संस्कृति, एवं अपनी माटी की गंध के साथ साथ वहाँ के प्राचीन ग्रंथों, परंपराओं, महापुरुषों एवं विद्वानों की दिशाबोधी बातों का संवाहक होता है। साहित्य सृजन में गहनता, विविधता एवं सकारात्मकता भी निहित होना आवश्यक है। पौराणिक ग्रंथों, प्राचीन साहित्य, अनेकानेक काव्यों के अध्ययन के साथ-साथ मेरा लेखन भी जारी है। मेरा सदैव प्रयास रहा है कि दिव्यग्रंथों, पुराणों के सार्वभौमिक सूक्त तथा विद्वान ऋषि-मुनियों के प्रासंगिक तथ्यों को समाज के समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ। इसमें मुझे कितनी सफलता मिली है, यह तो पाठक ही बतायेंगे। मेरा दोहा सृजन मात्र इस लिए भी है कि यदि गिनती के कुछ लोग भी मेरे दोहे पढ़कर सकारात्मकता की ओर प्रेरित होते हैं तो मैं अपने लेखन को सार्थक समझूँगा।
भारतीय जीवनशैली एवं संस्कृति इतनी विस्तृत है कि एक ही कथानक पर असंख्य वृत्तांत एवं विचार पढ़ने-सुनने को मिल जायेंगे। एक ही विषय पर विरोधाभास एवं पुनरावृति तो आम बात है। सनातन संस्कृति एवं परंपराओं में रचा बसा होने के कारण निश्चित रूप से मेरे लेखन में इनकी स्पष्ट छवि देखी जा सकती है। अंतर केवल इतना है कि मेरे द्वारा उन्हें अपनी शैली में प्रस्तुत किया गया है। मैं तो इन परंपराओं एवं संस्कृति का मात्र संवाहक हूँ। स्वयं को एक आम साहित्यकार के रूप में ज्यादा सहज पाता हूँ।
दोहा संग्रह ‘किसलय के दोहे’ के प्रकाशन पर मैं यदि अपनी सहधर्मिणी आत्मीया श्रीमती सुमन तिवारी का उल्लेख न करूँ तो मेरे समग्र लेखन की बात सदैव अधूरी ही रहेगी, क्योंकि वे ही मेरी पहली श्रोता, पाठक एवं प्रेरणा हैं। वे मेरे लेखन को आदर्श की कसौटी पर कसती हैं। यथोचित परिवर्तन हेतु भी बेबाकी से अपनी बात रखती हैं। मेरे इकलौते पुत्र प्रिय सुविल के कारण मुझे कभी समयाभाव का कष्ट नहीं उठाना पड़ता। हर परेशानी एवं बाधाओं के निराकरण की जिम्मेदारी बेटे सुविल ने ही ले रखी है। पुत्रवधू मेघा का उल्लेख मेरे परिवार को पूर्णता प्रदान करता है।
समस्त पाठकों के समक्ष मैं यह नूतन दोहा संग्रह ‘किसलय के दोहे’ प्रस्तुत करते हुए स्वयं को भाग्यशाली अनुभव रहा हूँ। आपकी समीक्षाएँ एवं टिप्पणियाँ मेरे लेखन की यथार्थ कसौटी साबित होंगी। सृजन एवं प्रकाशन में आद्यन्त प्रोत्साहन हेतु स्वजनों, आत्मीयों, मित्रों एवं सहयोगियों को आभार ज्ञापित करना भला मैं कैसे भूल सकता हूँ।
- डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय’
2419 विसुलोक, मधुवन कॉलोनी, विद्युत उपकेन्द्र के आगे, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर (म.प्र.) 482002
इस कृति के सभी दोहे
पारंपरिक, वैश्लेषिक, यथार्थपरक,
पौराणिक, प्रामाणिक हैं।
इनसे हम अपनी संस्कृति और वसुधैव कुटुम्बकं के भाव से जुड़ते हैं।
आपका आभार बावनकर जी।
आपके प्रयास एक दिन साहित्य संस्कृति को शीर्ष तक पहुँचाने में कारगर साबित होंगे।