सौ. वृंदा गंभीर
कवितेचा उत्सव
☆ जीवनाचा अंत… ☆ सौ. वृंदा गंभीर ☆
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जिवनाचा अंत | सुखरूप व्हावा |
पुण्याचा हा ठेवा | मिळवावा ||1||
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सुखाचा करावा | त्याग माणसाने |
जगाच्या दुःखाने | विव्हळावे ||2||
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धरावी संगत | सज्जनाची जगी |
ईश्वराचे रंगी | रंगवावे ||3||
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हर्षाने जगावे | कष्टाने झिजावे |
प्रेमाने वागावे | जीवनीया ||4||
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नको हा संसार | असे मायाजाळ |
कसे येई बळ | कोण जाणे ||5||
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अंतरीचा आत्मा | साक्ष देई मनी |
आध्यात्मा वाचुनी | काही नाही ||6||
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मनाचे विचार | गुणी आचरण |
संस्कार जपणं | आचरावे ||7||
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© सौ. वृंदा पंकज गंभीर (दत्तकन्या)
न-हे, पुणे. – मो न. 8799843148
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈