श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  मानवीय रिश्तों पर आधारित  चारोळी विधा में  रचित एक भावप्रवण कविता  – “मनकवडा। )

 

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य #- 19☆ 

 

 ☆ मनकवडा  ☆

 

भाव माझा भाबडा, देव तू रे  मनकवडा ।

न मागताच देशी मला हा योग केवाढा।।धृ।।

 

शाशू वायी मी अजाण, स्वछंदी असे मन।

क्रिडेमधे बालपण , भले बुरे नसे ज्ञान।

किशोरवयी गाजवती मित्र पगडा।।१।।

 

तरुणपण लागताच, तरंगलो मी हवेत।

वाटे मज घ्यावे जणू , जग सारे हे कवेत।

स्वप्न रंगी रंगलो मी प्रेम वेडा।।२।।

 

संसाराची धुंदी चडे, बायका मुले चोहिकडे।

होस मौज भागेना , हे मजशी कोडे।

स्वार्थासाठी होई कसा मार्ग वाकडा।।३।।

 

वृद्धपणी दीनवानी, दुःखाचा मी होता धनी।

संसारी हो कुचकामी,  तत्त्वज्ञान जागे मनी।

सांग कुठे शोधू तुला, हा मार्ग  तोकडा।।४।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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