(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ “कवितेच्या प्रदेशात” में उनकी एक कविता “उत्तरायण”. सुश्री प्रभा जी की कविता में जीवन के उत्तरायण की जो कल्पना की गई है वह वास्तव में कल्पना से परे है। ऐसी कविता की कल्पना करने के पश्चात कविता रचने के मध्य की प्रक्रिया निश्चित ही कवि को दार्शनिक भाव से परिपूर्ण करने की क्षमता रखती है। काल के सम्मुख कोई टिक नहीं सकता और उस पर कविता रचने के लिए काल के कपाल पर लिखने जैसा है। सुश्री प्रभा जी की कवितायें इतनी हृदयस्पर्शी होती हैं कि- कलम उनकी सम्माननीय रचनाओं पर या तो लिखे बिना बढ़ नहीं पाती अथवा निःशब्द हो जाती हैं। सुश्री प्रभा जी की कलम को पुनः नमन।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते हैं।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 22 ☆
☆ उत्तरायण ☆
© प्रभा सोनवणे
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