श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है!  आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर कविता पांडुरंग  )

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #22☆ 

 

☆  पांडुरंग☆ 

 

कटेवरी हात उभा विटेवरी

दीनांचा कैवारी पांडुरंग…!

 

नाही राग लोभ नाही मोजमाप

सुख वारेमाप दर्शनात…!

 

रूप तुझे देवा मना करी शांत

जाहलो निवांत अंतर्यामी…!

 

कीर्तनात दंग भक्तीचाच रंग

रचिला अभंग आवडीने…!

 

भीमा नदीकाठ सार्‍यांचे माहेर

कृपेचा आहेर अभंगात…!

 

सुख दुःखे सारी भाग जगण्याचा

स्पर्श चरणांचा झाल्यावर…!

 

सुजा म्हणे आता सार्थक जन्माचे

नाम विठ्ठलाचे ओठी आले…!

 

© सुजित कदम, पुणे

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