श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  शिक्षिका के कलम से एक भावप्रवण कविता / गीत  – “स्त्री अभिव्यक्ती। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 24 ☆ 

 

 ☆ स्त्री अभिव्यक्ती ☆

 

अभिव्याक्तीच्या  नावावरती, उगाच वायफळ बोंबा  हो।

चढणारीचा पाय ओढता, उगा कशाला थांबा हो।

जी sssजी र जी

माझ्या राजा तू रं माझ्या  सर्जा तू रं  ssss.।।धृ।।

 

गर्भामधी कळी वाढते, प्राण जणू तो आईची।

वंशाला हवाच दीपक , एक चालेना बाईची।

काळजास सूरी लावूनी, स्री मुक्तीचा टेंभा हो।।

जी जी रं जी…,।।१।।

 

आरक्षण दावून गाजर, निवडून येता बाई हो।

सहीचाच तो हक्क तिला,अन् स्वार्थ साधती बापे हो।

संविधानाची पायमल्ली की, स्री हाक्काची शोभा हो।

जी जी रं जी….।।३।।

 

स्री अभिव्यक्ती बाण विषारी,घायाळ झाले बापे ग।

सांग साजणी कशी रुचावी ,स्त्रीमुक्तीची नांदी ग।

कणखर बाणा सदा वसू द्या , नको भुलू या ढोंगा हो।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest


0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments