श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  शिक्षिका के कलम से  तरुण युवतियों के लिए एक शिक्षाप्रद भावप्रवण कविता  – “मासिक पाळी। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 25 ☆ 

 

 ☆ मासिक पाळी

 

तारूण्याच्या उंबऱ्यावर

स्त्रीत्वाची ही निशाणी।

म्हणे कोणी ओटी आली

लेक झाली हो शहाणी।

 

जुने नवे घाल मेळ

भावनांचा नको खेळ।

योग्यतेच ठेवी ध्यानी ,

होई व्यर्थ जाता वेळ।

 

नको जाऊ गोंधळून

सुचिर्भुत रहा दक्ष

जरी धोक्याचे हे वय

ध्येयावरी ठेवी लक्ष।

 

लागू नये नजर दुष्ट

तुला जपते जीवापाड।

जरी जाचक भासली

माझी बंधने ही  द्वाड।

 

हवे मर्यादांचे भान

घेता उंच तू भरारी।

श्रेष्ठ संस्कृती सभ्यता

सदा जपावी अंतरी।

 

जप तारूण्याचा ठेवा

जाण जीवनाचे मोल।

प्रकृतीने दिले तुज

असे स्त्रीत्व अनमोल।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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