श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे
(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना इस एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से जुड़ा है एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है। निश्चित ही उनके साहित्य की अपनी एक अलग पहचान है। अब आप उनकी अतिसुन्दर रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। मानसून ने हमारे द्वार पर दस्तक दे दी है एवं इसी संदर्भ में आज प्रस्तुत है उनकी एक सामयिक रचना “मान्सून।”)
साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य #-4
☆ मान्सून ☆
आला आला पावसाळा
कुणी म्हणती मान्सून।
तुझी चाहूल लागता
धरा हसे मनातून ।।
ढग करिता गडगड
स्वैर डुले ताडमाड।
मेघ गर्जना पाहून
सूर्य दडे ढगा आड।
असा अवखळ वारा
संगे पावसाच्या धारा।
भूमीदासाला भावला
गंध मातीचा हा न्यारा ।
मनोमनी मोहरली
झाडे वेली तरारली।
देई पिलांना ग उब
माता जरी शहारली।
चाटे वासरांना गाय
शोधी तान्हुलाही माय।
खेळगडी चिंब न्हाती
नसे पावसाचे भय।
तृषा धरेची शमता
शालू पाचूचा शोभला।
दान मोत्याचे लाभेल
बळीराजा संतोषला।
© रंजना मधुकर लसणे
आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली
9960128105