श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे
(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से जुड़ा है एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है। निश्चित ही उनके साहित्य की अपनी एक अलग पहचान है। आज प्रस्तुत है आपका एक अत्यंत भावप्रवण कविता ” हरीरुपे – दशअवतार”। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। )
☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 48 ☆
☆ हरीरुपे – दशअवतार ☆
दश अवतारी। हरीरुपे स्मरू। जीवनाचा वारू। स्थिरावेल।
मत्स्य कूर्म आणि। वराह वामन। सृष्टी नियमन। करीतसे।
हिराण्य मातला। वधुनी तयासी।तारी प्रल्हादासी। नरसिंहा।
ब्राह्मण्य रक्षणा। परशुराम सिद्ध। असे कटिबद्ध। धर्मयोद्धा।
मर्यादा पुरुष । राम आवतारी । कर्तव्य निर्धारी। सर्वकाळ।
सोळा कलायुक्त । पूर्ण अवतार। निर्गुणाचे सार। पार्था सांगे।
क्षमा शील शांती। बोध जगतास । बुद्ध महात्म्यास । दंडवत।
कल्की अवतार। कलीयुगी घेई। अधःपात नेई। लयालागी
दांवा परिसर। मानव चतुर । साधण्या अतुर। स्वार्थ हिता।
© रंजना मधुकर लसणे
आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली
9960128105