सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  एक  अत्यंत भावप्रवण  एवं समसामयिक कविता  “आमचं कुटुंब। आज कमोबेश सामान्य मध्यम एवं उच्च वर्ग के परिवारों की यही स्थिति है और सभी अनिश्चय के दौर से गुजर रहे हैं ।  इस वैश्विक महामारी काल में भविष्य के प्रति सभी चिंतित हैं और यह स्वाभाविक भी है। सुश्री प्रभा जी ने कुटुंब पर रचित कविता के माध्यम से प्रत्येक परिवार की पीड़ा साझा कर दी है।  कभी कभी मुझे लगता है संयुक्त परिवारों की परिभाषा बदल गयी है। आज संयुक्त परिवार वास्तव में वर्च्युअल संयुक्त परिवार हो गए हैं । वे संयुक्त भी हैं और स्वतंत्र भी। सुश्री प्रभा जी की एक माँ  के रूप में रचित संवेदनशील रचना के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 52 ☆

☆ आमचं कुटुंब ☆ 

 

आले दिवस असे की

जाता जाईना आळस

त्यात कोरोना विषाणू

त्याने केलाय कळस

 

पुत्र आहे दूरदेशी

त्याचे विस्तारे क्षितीज

स्नुषा, नातू आले घरा

केली सारी तजवीज

 

आहे  कुटुंबात माझ्या

प्रत्येकालाच स्वातंत्र्य

स्पेस दिली ज्याला त्याला

नको कोणा पारतंत्र्य

 

आम्ही  पेठांमधे आणि

“आयटी” च्या ते गावात

आणिबाणीच्या या क्षणी

आलो एकाच घरात

 

सून सुगरण माझी,

नातू अमृताची  खाण

रोज सोनियाचा दिनु

नसे कशाचीच वाण !

 

नित्य  प्रार्थिते देवाला

देई अभयाचे दान

जागतिक संकटाचे

आहे आम्हालाही भान !

 

माझ्या कुटुंबात नांदो

सदा सौख्य, शांती, प्रेम

सर्व जगातील जन

असो जिथे तिथे क्षेम !

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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