श्री सुजित कदम
(श्री सुजित कदम जी की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं। अब आप श्री सुजित जी की रचनाएँ “साप्ताहिक स्तम्भ – सुजित साहित्य” के अंतर्गत प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता “सांजवारा”। )
☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #6☆
☆ सांजवारा☆
अताशा अताशा जगू वाटते
तुझा हात हाती धरू वाटते.
नदीकाठ सारा खुणा बोलक्या
तुझ्या सोबतीने फिरू वाटते.
किती प्रेम आहे, नको सांगणे
तुझी भावबोली, झरू लागते.
कितीदा नव्याने तुला जाणले
तरी स्वप्न तुझे बघू वाटते.
छळे सांजवारा, उगा बोचरा
नव्याने कविता, लिहू वाटते. . !
© सुजित कदम, पुणे