श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे
(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से जुड़ा है एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है। निश्चित ही उनके साहित्य की अपनी एक अलग पहचान है। अब आप उनकी अतिसुन्दर रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनके द्वारा रचित “अभंग – आम्ही वारकरी”।)
साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य #-7
अभंग – आम्ही वारकरी
नित्य नेम वारी।
पावन पंढरी।
आम्ही वारकरी।
पंढरीचे।
वारीची पताका।
ऐक्याचा संदेश।
जात, धर्म, वेश।
एक आम्हा।
पवित्र तुळस।
मांगल्य कळस।
सोडून आळस।
घेऊ डोई।
टाळ विणा करी।
नाद गगनांतरी।
विठाई आंतरी।
अखंडीत
वैष्णवांची भक्ती ।
अलौकिक शक्ती।
कलीची आसक्ती ।
व्यर्थ जाय।
नामामृत गोडी।
चाखतो आवडी।
ध्यास घडोघडी
माऊलींचा।
निर्गुण माऊली।
भक्तांची सावली।
संकटी धावली।
सर्वकाळ।
संत सज्जनास।
आस ही मनास।
द्वैत बंधनास।
तोडी वारी।
© रंजना मधुकर लसणे
आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली
9960128105