श्री सुजित कदम
(श्री सुजित कदम जी की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं। मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ। पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है! निश्चित ही श्री सुजित जी इस हृदयस्पर्शी रचना के लिए भी बधाई के पात्र हैं। हमें भविष्य में उनकी ऐसी ही हृदयस्पर्शी कविताओं की अपेक्षा है। श्री सुजित जी द्वारा वर्णित कविता संभवतः प्रत्येक साहित्यकार की कविता है. किसी भी साहित्यकार के लिए शब्दों का सम्बन्ध जन्म जन्मांतर का होता है. फिर अक्षर तो शब्दों की ही इकाई हुई न. अक्षरों से हम सभी का नाता है किन्तु ऐसा सामंजस्य कोई श्री सुजित जी जैसा संवेदनशील कवि ही कर सकता है. प्रस्तुत है श्री सुजित जी की अपनी ही शैली में हृदयस्पर्शी कविता “अक्षरांशी माझ नातं…. !”। )
☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #16☆
☆ अक्षरांशी माझ नातं…. ! ☆
ब-याच दिवसांनंतर
पुस्तक हातात घेतलं की
मेंदूत धूळ खात पडलेली
अक्षर खडबडून जागी होतात
आणि शोधू लागतात
पुस्तकात दडलेल त्यांचं अस्तित्व
जोपर्यंत.. . .
हातातलं पुस्तक
नजरेआड होत नाही तोपर्यंत.
आणि . . त्यांनी पुस्तकात
शोधलेल्या त्यांच्या अस्तित्वाने
मी मात्र,
अस्वस्थ होत राहतो,
पुढचे कित्येक दिवस.. . !
शोधत राहतो
अक्षरांशी
असणार माझ नातं. . . . !
सुजित