श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है।  श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होतं आहे रे ” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  उनकी एक अभंग रचना  “माझा कृष्ण”उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 25 ☆

☆ माझा कृष्ण ☆ 

(काव्य प्रकार:-अभंग )

कृष्ण माझी माता

कृष्ण माझा पिता

कृष्णची कविता

होय माझी!!१!!

 

यशोदेचा नंद

वाढे गोकुळात

उचली पर्वत

गोवर्धन !!२!!

 

कृष्ण नटखट

सोन्यासम कान्ती

ईश्र्वराची शक्ती

त्याच्या अंगी !!३!!

 

मुरली हातात

कधी तो धरितो

लोणीही तो खातो

पेंद्यासंगे !!४!!

 

गुरे राखायाला

जाईं मित्रांसवे

सोडा हेवेदावे

हेचि सांगे !!५!!

 

एकत्र बसोनी

सोडूनि शिदोरी

खातसे दुपारी

कृष्ण काला !!६!!

 

द्रौपदी बहीण

कृष्णाने मानिली

अब्रू राखियेली

तिची त्याने !!७!!

 

संत कवी यांना

प्रेरणा कृष्णाची

दाविली भक्तीची

वाट त्यांना !!८!!

 

सांगे कृष्णदेव

आम्हा सामान्यांस

ठेवा हो विश्र्वास

माझ्यावरी !!९!!

 

सांगे आम्हा कृष्ण

नका मानू जात

गरीब श्रीमंत

असे काही !!१०!!

 

©®उर्मिला इंगळे

सतारा

!!श्रीकृष्णार्पणमस्तु!!

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