सुश्री स्वप्ना अमृतकर
(सुप्रसिद्ध युवा कवियित्रि सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी का अपना काव्य संसार है । आपकी कई कवितायें विभिन्न मंचों पर पुरस्कृत हो चुकी हैं। आप कविता की विभिन्न विधाओं में दक्ष हैं और साथ ही हायकू शैली की सशक्त हस्ताक्षर हैं। हम आपका “साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना की कवितायें ” शीर्षक से प्रारम्भ कर रहे हैं। इस शृंखला की यह तीसरी कड़ी है। संभवतः ‘साहित्य संसार’ शीर्षक से काव्यप्रकार : सुधाकरी अभंग (६,६,६,४) में रचित यह कविता उनके साहित्य संसार में से उत्कृष्ट रचनाओं में से एक होनी चाहिए। आज प्रस्तुत है सुश्री स्वप्ना जी की कविता “साहित्य संसार”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना अमृतकर यांची कविता अभिव्यक्ती # -3 ☆
☆ साहित्य संसार ☆
काव्यप्रकार : सुधाकरी अभंग (६,६,६,४)
गीता सहवास
ज्ञानेश्वरी ध्यास
साहित्य प्रवास
दादपुर्ण ॥ १ ॥
परंपरा जुनी
शब्दांची च झोळी
ओळींची लव्हाळी
परीपुर्ण ॥ २॥
साहित्य संसार
महिमा अपार
विश्वाचा प्रचार
अर्थपुर्ण ॥ ३ ॥
काव्या च्या रुपांत
होई काव्य खेळ
दिसे शब्द भेळ
कार्यपुर्ण ॥ ४॥
भासते रचना
कधी हास्यमय
कधी तत्वमय
स्नेहपुर्ण ॥ ५ ॥
साहित्य प्रगती
वंश चाले पुढे
साहित्तिक घडे
हो संपुर्ण ॥ ६ ॥
© स्वप्ना अमृतकर , पुणे