रेवा : नर्मदा – 6
प्रस्तुत है सफरनामा – श्री सुरेश पटवा जी की खोजी कलम से
(इस श्रंखला में आप पाएंगे श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ हैं।)
लोग अक्सर नर्मदा को सतपुड़ा की बेटी कह देते हैं जो पूरी तरह सही नहीं है। भारत के भूगोल को जानने वाले समझते हैं कि विंध्याचल और सतपुड़ा दो पर्वत श्रेणियाँ मध्यभारत में पूर्व से पश्चिम की तरफ़ पसरी हुईं हैं। आज के रीवा संभाग में सीधी से एक पर्वत श्रंखला रीवा सतना पन्ना छतरपुर दमोह सागर रायसेन सिहोर देवास इंदौर झाबुआ होते हुए गुजरात निकल जाती है। वही विंध्याचल पर्वत शृंखला है। जिससे हिरन, टिंदोली, बारना, चंद्रकेशर, कानर, मान, उटी और हथनी, ये आठ नदियाँ आकर माँ नर्मदा में मिलतीं हैं।
रेवा कुंड अमरकण्टक
मैकल पर्वत से निकलकर नर्मदा के साथ सतपुड़ा की पर्वतश्रेणियाँ डिंडोरी मंडला जबलपुर नरसिंघपुर होशंगाबाद और हरदा से होकर गुज़रती है। इस तरफ़ से बरनार, बंजर, शेर, शक्कर, दूधी, तवा, कुंदी, देव और गोई, ये नौ नदियाँ नर्मदा में मिलतीं हैं।
इस प्रकार कुल 17 बड़ी नदियाँ नर्मदा को सही मायने में नर्मदा बनातीं हैं। हम पलकमती जैसी छोटी तो कई नदियाँ हैं जो सीधी माता के चरणों में विश्राम पाती हैं। सारी छोटी नदियों का जल ओंकारेश्वर में पहुँचकर ॐ के आकार में मिलकर एकसार होता है। थोड़े आगे एक जगह है बड़वाह के नज़दीक जहाँ भारत का एक अत्यंत प्रतिभाशाली सैन्य निपुण प्रशासक बाज़ीराव पेशवा पूना के चितपावन ब्राह्मणों के षड्यंत्रों के चलते अकाल मृत्यु का ग्रास बना था। वह अपने जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारा था परंतु घरेलू प्रपंचों से मस्तानी से दूर होकर ज़िंदा रहने की ख़्वाहिश खो चुका था। वह ज़िंदा रहता तो शायद हिंदुस्तान अंग्रेज़ों का ग़ुलाम न हुआ होता। उसने दिल्ली को जीतकर मुग़ल बादशाह को सुरक्षा प्रदान की थी। शिवाजी के बाद वह ही प्रतिभाशाली व्यक्ति मराठा साम्राज्य में था जिसका नज़रिया अखिल भारतीय था जो कूटनीति, सैनिक और प्रशासनिक बारिकियाँ समझता था। बाक़ी सब मराठा सरदार स्वार्थपरता और क्षेत्रीयता की चाशनी में पगे हुए थे।
ओंकारेश्वर के संकुल में माँ नर्मदा ने हम बहनों को पहले रेवा फिर नर्मदा नाम से पुकारे जाने की कहानी सुनाई थी।
शब्द और नाम भी काल और परिस्थितियों के हिसाब से अर्थ ग्रहण करते और छोड़ते हैं। मुझे समझने के लिए आप लोग भाव और तत्व दोनो तरीक़े अपना सकते हैं। वैसे भाव भी तत्व में ही समा जाता हैं। जैसे आत्मा 1 है, तत्व 5 हैं, गुण 108 हैं। यहाँ जैसे ही 1, 5, 108 कहा तो भाव विलुप्त हो गया गणना आ गई। भाव गणनीय नहीं है, और तत्व खड़ा हो गया, विज्ञान आ गया, गौतम बुद्ध ने इसे ही विज्ञान कहा है। भाव को सहारा देने तर्क आ खड़ा हुआ। इसी विज्ञान पर महावीर और बुद्ध ने निरीश्वरवादी दर्शन खड़ा किया जो कि विश्व दर्शन की श्रेणी में आता है। सनातन विचारों की कोख से ही जैन और बौद्ध दर्शन आए हैं। सनातन की पराकाष्ठा महावीर और बुद्ध में परिलक्षित हुई है।
पहले भाव अभिव्यक्ति से रेवा और नर्मदा को समझें। भारत में किसी भी चीज़ का अस्तित्व अंततः भगवान विष्णु और शिव से जुड़ जाता है। गुप्त काल में रचित स्कन्द पुराण के रेवा खंड में वर्णित है कि विष्णु के कुल इक्कीस अवतार में से बीस अवतार के दौरान मानव हत्या के पाप से मुक्ति के लिए शिव के पसीने से राजा मैकल के घर में एक बारह वर्षीय कन्या उत्पन्न हुई। उसने वरदान माँगा कि उसका हरेक पत्थर शिवलिंग की मान्यता प्राप्त किया हो। उसे बिना किसी अनुष्ठान के शिव के रूप में पूजनीय माना गया। वह उछल कूद करते हुए सारी नदियों से उलटी दिशा में बह चली। 1312 किलोमीटर चलकर खम्बात की खाड़ी में जलधि में विलीन हो गई। उछल-कूद को रेवा भी कहा जाता है। वह डिंडोरी और मंडला जिले के पहाड़ी क्षेत्रों से उछल-कूद मचाते हुए गुज़रती है इसलिए उसे रेवा पुकारा गया। आज का रीवा उसी रेवा शब्द से बना है। अंग्रेज़ी में उसे आज भी Rewa लिखा जाता है। बघेलखंड के विंध्याचल पर्वत की एक श्रेणी मैकल भू-भाग से जो नदी निकलती थी वह पहले शहडोल जिले में था परंतु अब अनूपपुर जिले में आता है। वह सम्पूर्ण भू-भाग रेवा राज्य के नाम से जाना गया है। जिसमें रीवा सतना शहडोल उमरिया सीधी कटनी तक के इलाक़े आते थे। उसके परे दक्षिण में गोंडवाना लगता था। उत्तर में काशी और कारा राज्यों की सीमा थी।
इसमें एक बड़ा महत्वपूर्ण भाव छुपा हुआ है कि मानव धर्म सबसे बड़ा धर्म है। भले ही राक्षस ने मानवता के विरुद्ध काम किया हो और उसका वध करने के लिए विष्णु को अवतार लेकर मारना पड़ा हो लेकिन मानव हत्या का पाप भगवान विष्णु को भी लगा और उसकी मुक्ति की व्यवस्था सनातन दर्शन में रखी गई है। यह भाव ही मानवता के पक्ष में सबसे बड़ा तर्क है।
(कल आपसे साझा करेंगे श्री सुरेश पटवा जी एवं उनकी टीम की नर्मदा परिक्रमा (प्रथम खण्ड) की वास्तविक शुरुआत का प्रथम चरण )
क्रमशः …..
© श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)
कल कल बहती पुण्य सलिला के दर्शन मात्र से जीवन धन्य हो जाता है पटवा जी के मार्फत नर्मदा जी के बारे में नयी नयी जानकारी पढ़ने मिल रही है साधुवाद। ई-अभिव्यक्ति और हेमन्त जी को धन्यवाद।