हिन्दी साहित्य- लघुकथा – माँ की नज़र – श्री सदानंद आंबेकर

श्री सदानंद आंबेकर 

माँ की नज़र
अपनी बेटी अंजलि के आठवी की परीक्षा में प्रावीण्य सूची में आने की खुशी में सुधीर जी ने अपने घर पर आस-पास के लोगों की एक छोटी सी घरेलू पार्टी का आयोजन आज शाम को किया था।
रविवार का दिन था सो सुबह से ही घर के तीनों सदस्य व सुधीर की माताजी भी व्यवस्थाओं में जुटे थे।
इस गहमागहमी में बेटी को आराम से बैठ कर टी वी देखते पाकर वे गुस्सा होकर बोले- ”तुम्हारे ही लिये हमने ये कार्यक्रम रखा है और तुम काम में माँ को थोड़ा हाथ बंटाने की जगह आराम से बैठकर टी वी देख रही हो ? जाओ और मम्मी को रसोई में मदद करो।”
शोर सुनकर अंजलि की माँ बाहर आई और पति को कहा- “क्यों उसके पीछे पड़े रहते हो, अभी वह छोटी है फिर बड़ी होकर तो ताउम्र गृहस्थी में खटना ही है” – कहकर स्नेह भरी नजर बेटी पर ड़ालकर रसोई में चली गई। बेटी ने भी सुना और वैसे ही बैठी रही।
कुछ देर बाद नहाने के पूर्व सुधीर जी को याद आया कि नहाने का साबुन खत्म हो गया है। उन्होंने फिर बेटी को आवाज दी और कहा कि चेलाराम की दुकान से नहाने के साबुन की दो टिकिया जल्दी से ला दो और पैसे माँ से ले लेना।
यह सुनते ही उनकी  पत्नी फिर रसोई से बाहर आई और कहा-”सुनो, बिटिया अब बड़ी हो गई है, उसे यूं अकेला-दुकेला चाहे जहाँ बाहर मत भेजा करो, कुछ आया समझ में……..? आप खुद जाओ”….
अंजलि ने अपनी माँ की तरफ उलझन भरी निगाहों से देखा मानो उसकी दोनों बातों का मतलब समझना चाह रही हो फिर पहले की तरह चुपचाप टी वी देखने लगी।

©  सदानंद आंबेकर

(श्री सदानंद आंबेकरजी हिन्दी एवं मराठी साहित्य लेखन में अभिरुचि।  गायत्री तीर्थ  शांतिकुंज, हरिद्वार के निर्मल गंगा जन अभियान के अंतर्गत गंगा स्वच्छता जन-जागरण हेतु गंगा तट पर 2013 से  निरंतर प्रवास।)