(ई-अभिव्यक्ति में प्रा लछमन हर्दवाणी जी का हार्दिक स्वागत है। 3 मई 1942 को जन्मे प्रा लछमन हर्दवाणी जी ने अल्पायु में विभाजन की विभीषिका और उससे जुड़ी पीड़ा को अनुभव किया है। आपका समाज में एक बहुआयामी एवं ओजस्वी व्यक्तित्व के रूप में सम्माननीय स्थान है। सिंधी साहित्य में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। मराठी साहित्य के ज्ञाता होने के साथ ही आप एक बहुभाषी अनुवादक भी हैं। आपके मराठी, हिन्दी एवं सिंधी भाषा में अनुवादित साहित्य का अपना विशिष्ट स्थान है। हाल ही में आपकी 100वीं पुस्तक प्रकाशित हुई है।
श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना
संजय दृष्टि – डर
मनुष्य जाति में
होता है
एकल प्रसव,
कभी-कभार जुड़वाँ,
और दुर्लभ से दुर्लभतम
तीन या चार,
डरता हूँ,
ये निरंतर
प्रसूत होती लेखनी
और जन्मती रचनाएँ,
मुझे, जाति बहिष्कृत
न करा दें….!
© संजय भारद्वाज
(शुक्र. 4 दिस. 2015 रात्रि 9:56 बजे)
मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]
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प्रा लछमन हर्दवाणी जी द्वारा सिंधी भावानुवाद
मनुष्य जातीअ में
हूंदी आ जम, हिक भेरे हिक,
कडहिं कडहिं जाड़ा बार,
ऐं विरले कडहिं
टिनि या चइनि जो जमणु.
डकां थो
सदाईं वियामिजंड़ मुंहिंजी लेखणी
ऐं जमंदड़ रचनाऊं
मूंखे कढा न छडिनी जातीअ मां…!
© प्रा लछमन हर्दवाणी