श्री सुरेश पटवा
((श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। )
☆ आलेख ☆ इतिहास का अध्ययन – एक निवेदन ☆ श्री सुरेश पटवा ☆
सेवानिवृत्त बुजुर्गों को गुणवत्ता पूर्ण समय बिताने के लिए अपने देश के सच्चे इतिहास को अवश्य पढ़ना चाहिए ताकि उन्हें वर्तमान से जोड़कर एक स्वस्थ नज़रिया विकसित करने में सहूलियत हो सके। अन्यथा निहित स्वार्थों से अभिप्रेरित इतिहास उन्हें सही आकलन तक पहुँचने ही नहीं देता है।
भारत में राजनीतिक मजबूरियों के चलते इतिहास चार तरह से लिखा गया या लिखा जा रहा है।
- साम्यवादी इतिहास
- विजेता के नज़रिया का इतिहास
- राष्ट्रवादी इतिहास
- स्वतंत्र इतिहास
लोगों को यही नहीं पता कि स्वतंत्र इतिहास क्या है? वे प्रायोजित इतिहास की भूलभूलैया में भटक कर अनुचित अवधारणा विकसित कर लेते हैं। जिससे इतिहास के सबक़ भी गड़बड़ाने लगते हैं।
बीस सालों में इतिहास का शौक़िया अध्ययन करके मैंने भारत के स्वतंत्र इतिहास की प्राचीन काल से मध्ययुग तक के अध्ययन हेतु तीन किताबें चुनी हैं जो कि रोचक संदर्भ ग्रंथ भी हैं। प्रत्येक भारतीय को इन्हें अवश्य पढ़ना चाहिए।
“प्राचीन भारत” प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश चंद्र मजूमदार द्वारा और “दिल्ली सल्तनत” एवं “मुग़लकालीन भारत” आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव द्वारा कलमबद्ध की गई हैं। ये किताबें सस्ती भी उपलब्ध हैं या पुरानी किताबों की दुकान पर मिल जाती हैं। मैंने खुद चाँदनी चौक के ढ़ेर से ख़रीदीं थीं।
निवेदक: श्री सुरेश पटवा
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈