☆ बुद्ध पूर्णिमा विशेष – शांत मन के लिए, बुद्ध की तरह ध्यान करें ☆
(बुद्ध पूर्णिमा के पावन पर्व पर ई- अभिव्यक्ति के पाठकों के लिए इस विशेष आलेख के लिए हम श्री जगत सिंह बिष्ट जी (लाफ्टर योगा मास्टर ट्रेनर) के हृदय से आभारी हैं । श्री जगत सिंह बिष्ट जी द्वारा प्रेषित यह आलेख एवं वीडियो लिंक निश्चित ही आपके जीवन में नवीन ऊर्जा एवं उल्लास का संचार करेगा । आपसे विनम्र अनुरोध है कि कृपया इस आलेख एवं वीडियो को आत्मसात करें एवं ध्यान के इस प्रयोग के सहभागी बनें – हेमन्त बावनकर)
आज बुद्ध पूर्णिमा के शुभ अवसर पर गौतम बुद्ध जी से संबन्धित दो रोचक तथ्य आपसे साझा करना चाहूँगा :
1. बुद्ध पूर्णिमा का शुभ दिन वास्तव में तीन घटनाओं के कारण प्रसिद्ध है :,
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- गौतम बुद्ध का जन्मदिवस
- ज्ञान की प्राप्ति का दिन,
- और महा परिनिर्वाण दिवस !
2. बुद्ध का जन्म (लुम्बिनी में) एक वृक्ष की छांव में हुआ, उन्हें बोध भी (गया में) एक वृक्ष के तले प्राप्त हुआ, उन्होंने अपना पहला प्रवचन (सारनाथ में) और अनेक महत्वपूर्ण प्रवचन वृक्ष के नीचे बैठकर दिए, और उनका महापरिनिर्वाण भी (कुशीनगर में) एक वृक्ष के तले हुआ।
आज हम एक अत्यंत कठिन दौर से गुज़र रहे हैं. दसों दिशाओं में दुःख ही दुःख है.
वर्तमान परिवेश में बुद्ध अत्यंत प्रासंगिक हो जाते हैं. उनके द्वारा बताया मार्ग हमें इस हाहाकार से उबार सकता है.
बुद्ध ने कहा था – संसार में दुःख है. उन्होंने दुःख के अंत का उपाय भी बताया.
बुद्ध शांति, अहिंसा और करुणा की मूर्ति हैं. यदि हमें उनका अंशमात्र भी बनना है तो उनके बताये मार्ग पर चलना होगा और उनकी तरह ध्यान करना होगा.
बुद्धत्व प्राप्त करने के लिए उन्होंने आनापान ध्यान किया था. उसके बाद पैंतालिस वर्षों तक उन्होंने लाखों साधकों को विपश्यना ध्यान सिखाया और मंगल-मैत्री की भावना भी जगायी.
Shri Jagat Singh Bisht
(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)
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समता भाव आने से हम धैर्यवान बनते हैं और हममें दुःख को सहन करने की क्षमता आ जाती है. हम विचलित नहीं होते और सही निर्णय ले पाते हैं.
आज नफरत और असंयमित वाणी के कारण समाज में अशांति और असंतोष का माहौल है. मन शांत होने से नफरत दूर होती है और वाणी संयमित होती है.
ध्यान करने से प्रज्ञा जागृत होती है जिसके कारण इंसान अकुशल कर्मों से दूर रहता है – जैसे हिंसा, तोड़फोड़, आगजनी, व्यभिचार, धोखाधड़ी और फरेब.
ध्यान के उपरांत कुशल भाव जागृत होते हैं – जैसे प्रेम, सद्भावना, करुणा, मैत्री, दयालुता, दान और सदाशयता.
आइये, आज हम संकल्प लें कि मन, वचन और कर्म से कभी भी कोई ऐसा कार्य नहीं करेंगे जिससे किसी भी जीवित प्राणी को किंचितमात्र भी कष्ट हो. हमारा सदैव यह प्रयास होगा कि हम शांति और सद्भाव के दूत बनें.
© जगत सिंह बिष्ट
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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
सुंदर भावपूर्ण आलेख, महत्वपूर्ण जानकारी