श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’
☆ कविता – अहं एक वहम☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆
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किसी को कोई जानता है,
किसी को कोई जानता है l
किसी को कोई कोई जानता है,
किसी को सब कोई जानता है l
जिसको सब कोई जानता है,
उसको भी हर कोई नहीं जानता है l
वह जानता है कि उसको हर कोई जानता है
लेकिन उसे क्या पता है कि
उसे कोई कोई नहीं भी जानता है l
यहाँ हर कोई सिर्फ वहम पालता हैl
इसी वहम मे अहम् पालता है कि
मेरा अपना संसार है l
सबका अपना संसार है
किसी का छोटा संसार है
किसी का बड़ा संसार है l
किसी का कई संसारो का संसार है,
किसी का कई कई संसारों का संसार है l
सबका अलग-अलग आकार है l
कोई कहता कि हमारा बड़ा संसार हैl
कोई कहता है हमारा बड़ा संसार है l
लोग यह क्यों नहीं समझते कि
सभी संसारों से भी एक बड़ा संसार है l
इन सबमें आपके संसार का अति सूक्ष्मतम आकार है l
यहां तो अनंत संसार है l
इस अनंत संसार का एक ब्रह्मांड है l
इस ब्रह्मांड का पिता परम ब्रह्मः है l
वही सबसे बड़ा है
जिसका न आदि है न अंत है l
न आकार है न प्रकार l
वह साकार स्वरूप का भी प्रकार है l
लेकिन
आपका अपनी इस सूक्ष्मतम दुनिया को लेकर
इतना बड़ा अहं पालन बेकार है l
♥♥♥♥
© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”
लखनऊ, उप्र, (भारत )
दिनांक 22-02-2025
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈