सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ “डुगडुगी…” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

तुम्हारी नाराजगी के डर से

मैं

अपनी असहमति को

बंदी बना लूं

 

समर्थन की डुगडुगी

सौंप दूं

पल पल उठते सवालों को

कब्र में

सुलाती चलूं

 

बंदरिया के बच्चे की तरह

अगतिकता को

गले से चिपका लूं

अपने सरोकारों से

द्रोह करुं

 

नहीं

मुझसे यह सब न होगा

निर्विकल्पता से

चिढ़ है मुझे

पर

विकल्प भी नहीं है !

 

निर्णय की बेला में

मेरा निरीह हस्तक्षेप

मुझे टकटकी बाँधे

देख रहा है !

 

अंत में

कविता से मेरी उम्मीद

कितनी होनी चाहिए

या

कविता ने मुझसे

कितनी

उम्मीद करनी चाहिए !!!

♡♡♡♡♡

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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