सुश्री इन्दिरा किसलय
☆ कविता ☆ 🌏🌜🔴फर्श पर चाँद🔴🌛🌎 ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆
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फर्श पर
पड़ा हुआ है
पूनम का चाँद।
खिड़की की जाली की
परछाई के बीच-
तैर रहा है
एक टुकड़ा
आकाश समन्दर में।
बड़ा सुहाना मंज़र है।
पर इससे काम नहीं
बनेगा
बिजली का लट्टू
जलाना ही होगा
रोटियां सेंकनी ही होंगी
धरती सी गोल गोल
टकटकी बांधे हैं थालियां
डाइनिंग टेबल पर
फैली हुई
प्रतीक्षा को समेटकर
चुकाना होगा सांसों का
मोल, अनमोल ।
ऐसे में एक कील ठोंककर
चाँद को दीवार पर
टांग देना ही
बेहतर है,
ताकि वह
घटना बढ़ना भूल जाए।
अमावस में काम आए।
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© सुश्री इंदिरा किसलय
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈