श्री आशीष गौड़
सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री आशीष गौड़ जी का साहित्यिक परिचय श्री आशीष जी के ही शब्दों में “मुझे हिंदी साहित्य, हिंदी कविता और अंग्रेजी साहित्य पढ़ने का शौक है। मेरी पढ़ने की रुचि भारतीय और वैश्विक इतिहास, साहित्य और सिनेमा में है। मैं हिंदी कविता और हिंदी लघु कथाएँ लिखता हूँ। मैं अपने ब्लॉग से जुड़ा हुआ हूँ जहाँ मैं विभिन्न विषयों पर अपने हिंदी और अंग्रेजी निबंध और कविताएं रिकॉर्ड करता हूँ। मैंने 2019 में हिंदी कविता पर अपनी पहली और एकमात्र पुस्तक सर्द शब सुलगते ख़्वाब प्रकाशित की है। आप मुझे प्रतिलिपि और कविशाला की वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं। मैंने हाल ही में पॉडकास्ट करना भी शुरू किया है। आप मुझे मेरे इंस्टाग्राम हैंडल पर भी फॉलो कर सकते हैं।”
आज प्रस्तुत है एक विचारणीय एवं हृदयस्पर्शी कविता माँ !!
☆ कविता ☆ माँ !! ☆ श्री आशीष गौड़ ☆
मुझे बचपन का बहुत कुछ याद नहीं पड़ता।
उस पल का तो कुछ भी नहीं, जब मैं गर्भ में था ॥
कष्ट, डर, भूख और याद
अनुभूति की इन्ही विधाओं से मैंने तुम्हें पहली बार जाना था।
कुछ और पलों को, मैंने संभावनाओं और आकांक्षाओं वाले कमरे में जिए।
उसी कमरे के दाहिने वाले दरवाज़े से बाहर सड़क शहर जाती थी ॥
कुछ कुछ याद है, तब का जब मैं पहली बार घर छोड़ रहा था।
याद नहीं की मैंने पूछा नहीं या तुमने बताया नहीं, की अब घर छूट रहा था ॥
विस्थापन सदा सुखद नहीं रहते।
नहीं याद मुझे की मेरे जाने के बाद, तुमने मुझे कितने पलों तक वहीं से देखा था ॥
वही मुँडेर जहाँ से मैं कूद नहीं पाता था, उसी को लांघते देख तुमने मुझे विदा किया था ॥
– २ –
अनंत में शून्य से इस शहर में,
इकाई से शुरू हुए जीवन में,
टाइम मशीन मेरे साल निगलती रही ॥
तुम आती रही, जब जब मैंने बुलाया।
तब भी, जब जब तुम्हें आना था ॥
माँ तुम्हारे सुनहरे होते बालों में
एक आज, मुझे दो कल सा प्रतीत होता था ॥
मेरे बच्चों को बड़ा किया
पर मैं ना देख पाया बचपन उनका, जैसे नहीं जानता था मैं बचपन मेरा ॥
मैंने नहीं देखे मेरे खिलौने
जैसे नहीं देखी, मैंने तुम्हारी भी डिग्रियाँ ॥
मेरे जीवन की त्रासदी यह होगी, कि मैं तुम्हें बूढ़ा होते देख रहा हूँ।
जैसे इस सभ्यता की एक त्रासदी यह,
कि गाँव से विस्थापन ने, माँ को गाँव और बेटों को शहर कर दिया ॥
अब जब तुम यहाँ नहीं होती
तब भी रहती हो तुम थोड़ा थोड़ा,गाँव से लाए गए बर्तन बिस्तरों में।
दिखती हो तुम हमेशा, दीवार पर टंगी मेरा बचपन ढोती तस्वीरों में ॥
© श्री आशीष गौड़
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈