सुश्री इन्दिरा किसलय
☆ कविता ☆ यह परिवर्तन है?? ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆
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दो गज घूँघट
सती,कन्याभ्रूण हत्या,ऑनर किलिंग
भयावह वैधव्य
बाल विवाह
जाने कितनी अमानुषिक प्रथाएं
स्त्री के अशक्त अस्तित्व को
चीख चीखकर
कहती रहीं
*
तुम हजारों वर्षों से
आक्रान्ताओं से
उनकी
रक्षा न कर सके
तो असूर्यपश्या बनाकर दम लिया
*
नयी सदी के उजाले में
तुममें से कुछ ने
उन्हें पढ़ाया लिखाया
वे सजग हुईं अपने अस्तित्व को लेकर
वे क्रमशः अंश अंश
आत्मनिर्भर बनीं
फिर तकनीकी क्रान्ति की सुनामी ने
सब कुछ उलट पलट कर रख दिया
*
अब तुम उसमें नजाकत
फेमिनिटी ढूँढते हो
सत्तर के दशक की
लजीली सजीली
सपनीली नायिकाओं को देखकर
आहें भरते हो
अपना बोया हुआ काटोगे नहीं ?
*
अब वह तुम्हारे कंधे से कंधा
मिलाना चाहती है
तुम्हें मंजूर नहीं
कसमसा रहे हो
स्त्री में पुरुषत्व को लेकर
काश तुम वक्त के साथ
स्त्री को सिर्फ स्त्री
रहने देते
उसको वस्तु न समझते
*
आज तुम प्रतिशोध की मुद्रा में हो !
समाज की चूलें हिल रही हैं
यह परिवर्तन है
क्या इसी परिवर्तन के आकांक्षी थे तुम?
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© सुश्री इंदिरा किसलय
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈