श्री सुरेश पटवा
((श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। आजकल वे हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना स्वीकार किया है जिनमें कई कलाकारों से हमारी एवं नई पीढ़ी अनभिज्ञ हैं । उनमें कई कलाकार तो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है महान फ़िल्मकार : के.आसिफ़ पर आलेख ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 20 ☆
☆ महान फ़िल्मकार : के.आसिफ़ 2 ☆
मुग़ल-ए-आज़म अपने ज़माने की सबसे मंहगी और सफल फ़िल्म थी, लेकिन इसके निर्देशक के. आसिफ़ ताउम्र एक किराए के घर में रहे और टैक्सी पर चले.
यासिर अब्बासी बताते हैं, “जब शाहपुरजी बहुत तंग आ गए तो उनसे एक बार नौशाद ने पूछा कि अगर आप को आसिफ़ से इतनी शिकायत है, तो आपने उनके साथ ये फ़िल्म बनाने का फ़ैसला क्यों किया? शाहपुरजी ने एक ठंडी सांस लेकर कहा कि नौशाद साहब एक बात बताऊँ, ये आदमी ईमानदार है.”
“इसने इस फ़िल्म में डेढ़ करोड़ रुपए ख़र्च कर दिए हैं, लेकिन उसने अपनी जेब में एक फूटी कौड़ी भी नहीं डाली है. बाक़ी सभी कलाकारों ने अपना कॉन्ट्रैक्ट कई बार बदलवाया, क्योंकि वक़्त गुज़रता जा रहा था. लेकिन इस शख़्स ने पुराने कॉन्ट्रैक्ट पर काम किया और कोई धोखाधड़ी नहीं की.”
“कोई पैसे का ग़बन नहीं किया. ये आदमी आज भी चटाई पर सोता है, टैक्सी पर छह आना हर मील का किराया देकर सफ़र करता है और सिगरेट भी दूसरों से मांग कर पीता है. ये आदमी बीस घंटे खड़े हो कर लगातार काम करता है और हम लोग हैरान रह जाते हैं.”
ऐतिहासिक फिल्म ”मुगल-ए-आजम” बनाने वाले के. आसिफ ने सितारा देवी से शादी की थी। सितारा देवी भरतनाट्यम के लिए देश-विदेश में मशहूर थीं। वह अच्छी कलाकार होने के साथ बड़े दिल वाली महिला थीं। उन्होंने पति से निगार की सिफारिश की। पत्नी को खुश करने के लिए के. आसिफ ने निगार को मुगल-ए-आजम में काम दे दिया, जिन्होंने मधुबालाके विरुद्ध बहार की भूमिका निभाई थी लेकिन सितारा देवी पर यह काफी भारी पड़ा। आसिफ एक दिन निगार को सितारा देवी की सौतन बना कर घर ले आए। यह उनके दिल पर नागवार गुजरा, पर वह खून का घूंट पीकर रह गईं।
एक बार और आसिफ ने दगाबाजी की, इस बार उनकी नजर अपने दोस्त की बहन पर ही पड़ गई। उन्होंने दिलीप कुमार की बहन अख़्तर आसिफ़ को बेगम बना लिया। तब सितारा देवी के सब्र का बांध टूट गया। उन्होंने आसिफ को बद्दुआ देते हुए कहा- ‘तुम बेमौत मरोगे और मैं तुम्हारा मरा मुंह भी नहीं देखूंगी।’ हालांकि, यह अलग बात है कि सितारा देवी उतनी बेरहम दिल नहीं रह सकीं। 9 मार्च, 1971 को आसिफ की मौत की खबर जब उन्हें मिली तो वह खुद को रोक नहीं पाईं। वह तुरंत आसिफ के घर गईं और उनके अंतिम दर्शन किए।
के.आसिफ़ को मुग़ले आज़म के लिए 1960 का बेस्ट फ़िल्म फिल्मफेअर अवार्ड, बेस्ट निर्देशक अवार्ड, राष्ट्रपति का सिल्वर अवार्ड मिले थे।
© श्री सुरेश पटवा
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈