डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी
(डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी जी एक संवेदनशील एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार के अतिरिक्त वरिष्ठ चिकित्सक के रूप में समाज को अपनी सेवाओं दे रहे हैं। अब तक आपकी चार पुस्तकें (दो हिंदी तथा एक अंग्रेजी और एक बांग्ला भाषा में ) प्रकाशित हो चुकी हैं। आपकी रचनाओं का अंग्रेजी, उड़िया, मराठी और गुजराती भाषाओं में अनुवाद हो चुकाहै। आप ‘कथाबिंब ‘ द्वारा ‘कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार (2013, 2017 और 2019) से पुरस्कृत हैं एवं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा “हिंदी सेवी सम्मान “ से सम्मानित हैं।
☆ यात्रा-वृत्तांत ☆ धारावाहिक उपन्यास – काशी चली किंगस्टन! – भाग – 18 ☆ डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी☆
(हमें प्रसन्नता है कि हम आदरणीय डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी जी के अत्यंत रोचक यात्रा-वृत्तांत – “काशी चली किंगस्टन !” को धारावाहिक उपन्यास के रूप में अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास कर रहे हैं। कृपया आत्मसात कीजिये।)
पंचमेल खिचड़ी
यानी फुटकर घटनायें। अर्थात स्मृतियों की अठन्नी चवन्नियाँ।
किंग्सटन में बैठे आम का स्वाद लेने की बात तो आपको मालूम हो चुकी है। वहाँ का एक और फल है नेक्टारिन। बड़े साइज के आलू बुखारे जैसा। वही रूप, वही रंग और वही रस। बल्कि और भी मीठा।
फिर रसमलाई के रसास्वादन के पश्चात एक दूसरा मीठा भी चखिये। ये हैं बकलावा। सोनपपड़ी का दूर का रिश्तेदार। यह तुर्की ऑटोवान साम्राज्य की मिठाई है। वहॉँ से पहुँची ग्रीस, फिर यूरोप होते हुए कनाडा। और आखिरी मंजिल मेरा पेट।
अजी आप यकीन नहीं कीजियेगा एक रोज तो मेट्रो बाजार से हमें कोहड़े के फूल भी मिल गये। प्लास्टिक के एक पैकेट में सात। फिर उसे बेसन से लपेट कर, तेल में छान कर ‘पोड़ेर भाजा’ बनाना। कोहड़े से बनारसिओं का आत्मिक रिश्ता है। पूछिए – वो कैसे? अरे भाई कुम्हड़े को काशीफल कहते हैं कि नहीं ? खिड़की के बाहर रिमझिम बारिश का नजारा हो, हाथ में आपकी पसन्दीदा किताब हो, बगल की टेबुल पर मेरी भौजी ने आपके लिए गरमा गरम कोहड़े की यह भाजी पेश की हो और संगति के लिए एक कप चाय। तो उमर खैय्याम ने जैसे लिखा है – जन्नत उतर आये धरती पर। न, न…..पहले आजमा लीजिए, फिर राय जाहिर कीजिए।
मॉन्ट्रीयल के होटल में मैं ने एक चीज ख्याल की थी कि यहाँ बत्तियों के स्विच हमारे हिसाब से उल्टे हैं। यानी, वहाँ की तरह ऑन करने के लिए ऊपर से नीचे नहीं, बल्कि नीचे से ऊपर उठाइये। झूम के घर में या नायाग्रा के होटल में भी वही बात।
सड़क के दोनों ओर लगे बिजली के खंभे तो लकड़ी के बने होते ही हैं, यहाँ मकान बनाने में भी लकड़ी का खूब इस्तेमाल होता है। बस कंक्रीट के फ्रेम के बीच लकड़ी की दीवार। निजी मकानों में ज्यादातर लकड़ी की खपत। उसी की छत, उसी की दीवार। फिर भी यह देश कितना हरा भरा है !
यहाँ अपनी सेहत के लिए लोग दिनभर टहल रहे होते हैं, या दौड़ रहे होते हैं। दौड़नेवालों की कलाई में एक किसिम की घड़ी बँधी होती है, जिससे वे यह हिसाब लगा सकते हैं कि उस वर्जिश के दौरान उनकी कितनी कैलोरी ऊर्जा खर्च हुई। उसी हिसाब से आप और ज्यादा कसरत कीजिए या कम।
कॉनफेडरेशन हॉल के ठीक पीछे है मार्केट स्कैवर। बहुत ही विशाल किसी फुटबॉल फील्ड जितना लंबा चौड़ा ऑगन जैसा। यहाँ सप्ताह के दो दिन यानी शनिवार और मंगलवार को किसान अपनी अपनी गाड़ी से ताजी सब्जियाँ लेकर आते हैं। चारों ओर फूलों की दुकान लग जाती हैं। करीब ग्यारह से शाम तीन बजे तक की दुकानदारी।
मार्केट स्कैवर का फर्श भी पत्थर से बने हैं। इस चौरस जगह के दक्षिण में खड़ा है कॉनफेडरेशन हॉल। उत्तर पश्चिम कोने में निरंतर उछल रहा है एक फव्वारा। इस पूरे इलाके को घेर कर बेंच रक्खी हुई हैं। माँ बाप अपने बच्चों को लाकर फव्वारे के पास खड़ा कर दे रहे हैं,‘वो देखो!’
कोई पानी के कतरों में अपनी हथेली को फैला दे रहा है। एक अपना हाथ हिला रहा है,‘मैं नीचे कूद जाऊँगा, ममी।’
एक शाम को वहाँ बैठा ही था कि दूर से बैगपाइप की धुन सुनाई देने लगी। यह स्कॉटलैंड का बाजा है। उधर लेक ऑन्टारिओ के सामने कॉनफेडरेशन हॉल के उस पार वे बजा रहे होंगे। वहाँ कुछ न कुछ हर शाम को होता रहता है। इस मार्केट में मैं ने एकबार नुक्कड़ नाटक जैसा कुछ देखा था। नाटक नहीं, बल्कि साईकिल लेकर करामात। अभिनेता कुछ कहते भी जा रहे थे। बीच बीच में दर्शक हँस भी रहे थे।
यहाँ आकर बैठिये तो आपके पैरों के पास कबूतर और बादामी सफेद सीगल पक्षी आकर बैठ जायेंगे। सबकी अपनी अपनी उम्मीद है। तभी तो कुछ पाने की जिद है।
शनिवार की शाम हम दोनों इधर मार्केट स्क्वैर की ओर आ रहे थे तो देखा प्रिन्सेस स्ट्रीट के मोड़ पर एक आदमी एक कुर्सी पर बैठे गिटार बजा रहा है। उसके सामने पटरी पर उसका हैट रखा है। और हैट के अंदर फुटकर पड़े हुए हैं। यानी शाहंशाही अंदाज में भीख माँगना। शनि और रविवार की शाम को यह कार्यक्रम चलता है। चलते चलते हमारे देश के भिखारिओं के सिरमौर के बारे में भी जरा सुन लीजिए। कॅलरस् ऑफ इंडिया में भारत के तीन टॉप मंगनों का नाम दिया था। सर्वप्रथम हैं भारत जैनःः इनका मासिक आय है 90.000 से 1.3 लाख, पैरेल और मुंबई में इनके दो फ्लैट है, संपत्ति की कीमत 70 लाख से 1.2 करोड़, इनका परिवार स्कूल सप्लाई का धंधा करता है, दो दुकान इनलोगां ने किराये पर उठायी है।
दूसरे नंबर पर हैं – संबाजी कालेःः आय- 80.000 से 1 लाख प्रति माह। एक फ्लैट और दो मकानों का मालिक। और…….
तीसरे नम्बर पर हैं – कृष्णा कुना – आय -50.000 से 70.000 प्रति माह। एक फ्लैट के मालिक।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, अमीर भया न कोय। कर फैलाने की कला से धन बरसा होय!
किंग्सटन का हर रास्ता इतना साफ सुफ होने बावजूद शनिवार रविवार को अगर आप उस शाहजादी मार्ग यानी प्रिन्सेस स्ट्रीट पर जाते हैं तो फुटपाथ के नजदीक श्वान कृत गंदगी देख सकते हैं। ऐसा क्यों? उन दोनों दिन दुकानें बंद रहती हैं, इसलिए ? सैटर्डे नाइट फीवर या शनि का प्रकोप ?
ढन्न्….ढन्न्…….घंटा सात बार बजा। मगर चहुँदिशि जरा अपनी नजर घुमा कर देखिए। कितना उजाला है, धूप है! केवल छाया के कारण ही मैं यहाँ बैठ ले रहा हूँ।
देखिए देखिए उन दो लड़कों को। स्केट बोर्ड पर प्रैक्टिस कर रहे हैं। दोनों लहराते हुए पहुँच गये बीच के विशाल अंगणा में। लकड़ी के एक तख्ते के नीचे दो जोड़े पहिये लगे हैं। उसी पर खड़े होकर वे मजे से चले जा रहे हैं। उछल उछल कर करतब प्रैक्टिस कर रहे हैं। कभी हवा में उछल कर पैरों के नीचे स्केट बोर्ड को घुमा लेते हैं, तो कभी उस पर सीधे खड़े होने का प्रयास कर रहे हैं। यानी अपने मन के हुक्म से पैरों को नचाना।
आधे घंटे में रोलर स्केटिंग करते हुए कोई घूमने आ गया। एक लड़का साइकिल का हैंडिल छोड़कर हाथों को पंखों की तरह फैलाकर साइकिल चला रहा है। पंख फैलाकर आनन्द पंछी उड़ रहा है…..
जब जाड़े में यहाँ बर्फ ही बर्फ बिछी होती है तो आइस स्केटिंग के लिए सारा िंकंग्सटन इकठ्ठा हो जाता है। क्या नजारा होता होगा ! सफेद तुषार पर इतने सारे किशोर किशोरियाँ, युवक युवतियाँ छक कर मस्ती की मय पी रहे हैं …….
दो किशोरियां फव्वारे के पास से गुजर जाती हैं। अरे ठहर क्यों गयीं ? एक ने मुड़ कर फव्वारे के पानी में सिक्का उछाल दिया। वो हँस रही है।
विशिंग फाउन्टेन!? हम जीते हैं इस दुनिया में दिल में लिए अरमान, होगी पूरी मनौतियां कब, खुदा बस देना ध्यान ! और दो परिवार आये। उनके बच्चे भी उसी तरह अपने अपने डैडी से कह रहे हैं, ‘मुझे भी फव्वारे में सिक्का उछालने दो न !’
एक नन्हा तो बिलकुल नीचे झाँक रहा है। अरे मत कर बेटा! चलो भाई, भगवान खुश हो न हो, तुम तो खुश हुए। बस इन्हीं उम्मीदों पर ही तो दुनिया जीती है …..
खुदा को खुश करने के लिए इंसान क्या क्या नहीं करता ? इसबार बकरीद के पहले 25.9.2015. के अंग्रेजी हिन्दू से एक समाचार पढ़िए – ज़ीहिज्जा की दसवीं को होनेवाली बकर ईद के लिए श्रीनगर के कोई सैयद साहब भेड़ खरीदने गये हुए हैं। वे मोल भाव कर रहे हैं। उन्हें तीन भेंड़ चाहिए। क्योंकि उनके तीन बेटे हैं।
जब खुदा ने हजरत इब्राहीम से कहा था – ‘ऐ इब्राहीम, तुम मेरे लिए अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दो।’ तो हजरत ने सोचा – मेरी औलाद से बढ़कर मेरे लिए कौन सी चीज प्यारी होगी ? सो मर्वः पहाड़ की चोटी पर अपने बेटे इस्माइल को ले जाकर उन्होंने उसीकी गर्दन में छुरी रख दी। मगर अल्लाह की करामात देखिए कि बेटे की गर्दन में छुरी रखते समय ज्यों उन्हांने अपनी आँखें बंद कर लीं, तो किसी मेमने की मिमियाने की आवाज उनके कानों में पड़ी। आँख खोलते ही – यह क्या! उनके बेटे की जगह तो एक मेमना खड़ा है ! अल्लाह के दूत जिब्राइल ने इस्माइल की जगह उसे रख दिया था। उन्होंने कहा, ‘इब्राहीम, परवरदिगार ने तुम्हारी सौगात स्वीकार कर ली है!’
तो क्या इसीलिए अपने बच्चों की संख्या गिनगिन कर आप कुर्बानी की भेंड़ खरीदीएगा ? क्या इसीसे अल्लाह खुश हो जायेंगे ?
यही कथा बाइबिल के जेनेसिस में भी है। वहाँ अब्राहाम के बेटे का नाम आइजैक है। खैर एक काबिले गौर बात यह भी है कि अब्राहाम या इब्राहीम को शादी के पच्चीस साल बाद यह बेटा प्राप्त हुआ था। ईश्वर के कहने पर उसी को …….
देखिए, दास्तानों की एक ही धारा सारे धर्मों में से होकर गुजरती है। जैसे गंगा यहाँ गंगा है, तो आगे चलकर यही कहीं हुगली है तो कहीं पद्मा। फिर भी क्रिश्चियन और मुसलमानों के बीच क्रुसेड यानी जंग होती रहीं। फिर हमारे कर्ण भी तो आरी से अपने बेटे को ही काट कर उसका दान दे रहा था।
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