डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी
(डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी जी एक संवेदनशील एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार के अतिरिक्त वरिष्ठ चिकित्सक के रूप में समाज को अपनी सेवाओं दे रहे हैं। अब तक आपकी चार पुस्तकें (दो हिंदी तथा एक अंग्रेजी और एक बांग्ला भाषा में ) प्रकाशित हो चुकी हैं। आपकी रचनाओं का अंग्रेजी, उड़िया, मराठी और गुजराती भाषाओं में अनुवाद हो चुकाहै। आप ‘कथाबिंब ‘ द्वारा ‘कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार (2013, 2017 और 2019) से पुरस्कृत हैं एवं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा “हिंदी सेवी सम्मान “ से सम्मानित हैं।
☆ यात्रा-वृत्तांत ☆ धारावाहिक उपन्यास – काशी चली किंगस्टन! – भाग – 20 ☆ डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी☆
(हमें प्रसन्नता है कि हम आदरणीय डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी जी के अत्यंत रोचक यात्रा-वृत्तांत – “काशी चली किंगस्टन !” को धारावाहिक उपन्यास के रूप में अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास कर रहे हैं। कृपया आत्मसात कीजिये।)
घूमने को जगह और भी हैं कनाडा में, किंग्सटन के सिवा
जैसे जैसे रुपाई को मौका मिलता वह हमें लेकर आस पास के दर्शनीय स्थलों को घुमा ले आता। रोज ही बिटिया का मुँह और सूखने लगता – वापस जाने के दिन जो नजदीक आने लगे हैं। मगर क्या करूँ?
‘आज हम नैपानी चलेंगे। वहाँ जंगल है, खेत है, रास्ते के दोनों ओर सुंदर सुंदर कॉटेज हैं। एक छोटा सा कस्बा है नैपाची।’ रुपाई प्रदत्त इन्फार्मेशन।
रास्ते में बारिश शुरु हो गई। खेतों पर छोटे छोटे ट्रैक्टर चल रहे हैं। दोनों ओर मक्के के खेत। और वो देखिए लकड़ी के बने खलिहान। कितने बड़े हैं! खलिहान के पीछे अंदर की गर्मी निकलने के लिए चिमनी बनी है।
ओडेशा टाउन के पास एक जगह लिखा है लॅयालिस्ट विलेज। फिर वही इतिहास। यानी यहाँ के लोग ब्रिटिश शासन के समर्थक थे। फ्रांसीसिओं के नहीं। ऐसे आपको और जगह भी देखने को मिलेंगे।
कार जहाँ पार्क की गई उसकी बगल में अद्भुत सब पत्थरों से दीवार या बाड़नुमा बनी है। उन पत्थरों पर आप एक एक स्तर को देख सकते हैं। कुछ ऐसे ही पत्थर हैं जोशीमठ के आगे बद्रीनाथ के रास्ते पर। केदार के रास्ते दूसरे ढंग के पत्थर हैं। इन पत्थरों की दास्तान भी जरा सुनिए। पंद्रह हजार साल पहले लौरेनटाइड बर्फ की परत बनी थी, जो बारह हजार साल पहले पिघलने लगी। इसी से ग्लेशियल लेक का निर्माण हुआ। बनी ऑन्टारिओं झील। एक जगह यह पूरी दास्तान लिखी हुई है।
यहाँ नैपानिस नदी से निर्झर निकल कर दाहिने से बांये बहती जा रही है। नदी पर दो पुल बने हैं। एक पास में। दूसरा वहीं दूर। सामने एक फव्वारा छलाँग लगा रहा है। सामने नदी की धारा के बीच पत्थरों की सेज पर माँ बतख अपने बच्चों के साथ सो रही है। उसकी चोंच पीछे पीठ पर पंखों के बीच अलसायी सी पड़ी हुई है। कभी कभी गले को तान कर माँ नेक एक्सरसाईज कर ले रही है। बच्चे टुकुर टुकुर माँ को निहार रहे हैं। दोस्त, केवल दृश्यों का मजा लूटिए। इन नयन मनोहर नजारों से अपने नयनों को तृप्त कीजिए। निर्झर के गीत सुनिए। बस…….
यहाँ से हम पहुँचे बाथ। इंग्लैंड के बाथ से ही यह नाम लिया गया है। यहाँ लॅयालिस्ट क्लब भी है। एक जगह इंग्लैंड का यूनियन जैक लटक रहा है। एंग्लिकन चर्च से आगे हम पहुँचे बाथ म्यूजियम। झील के किनारे होने के कारण यहाँ प्राचीन काल में मछलिओं का व्यवसाय ही होता रहा। तो फैक्टरी लेन की पुरानी फिशरी बिल्डिंग के तराजू वगैरह रक्खे हुए हैं। पंसारी के तराजू में एक पैन एक तरफ, जिस पर सामान रखा जाता था। और स्केल पर पाँच पाउंड के बाट को खिसका कर दूरी के अनुसार उसका वजन कर लिया जाता।
यहाँ के सर्वप्रथम अधिवासी मछली पकड़ते थे। फिर बच जाने पर बेचने लगे। उस समय बार्टर यानी सिर्फ माल का लेन देन करके ही व्यवसाय होता था। फिर उद्योग बना और मछलियां निर्यात की जाने लगी। काशी पर ऐसा कोई म्यूजियम है?
यहाँ रूथ डुकास की पेंटिंगस हैं। वही कनाडा के चित्र बनाने वाले सर्वप्रथम चित्रकार हैं। उनके बने चित्रों में रेड इंडियनस् के पास कोई घोड़ा नहीं है। आखिर घोड़ा तो पर्तुगीज/स्पेनीश लोग ही यहाँ लेकर आये थे। वो देखिये अल्मारी के भीतर लौरेन्टाइन आर्चाइक काल की कुल्हाड़ी का मोटा सेल्ट से बना अगला हिस्सा, जिससे चोट की जाती है, वो रखा है। उधर ग्राउन्ड स्लेट से बने भाले का अग्रभाग। अरे मैडम, वो है आपलोगों की पसंद की चीज। उस जमाने की इस्त्री। पहिये पर खड़ा एक पुराना वाशिंग मशीन। अरे इसके ऊपर एक नन्हे से बास्केट में दो तीन साबुन के टुकड़ें भी हैं। और मिट्टी के बने उन तंबाकु सेवन की पाइप को तो देखिए। साथ ही मिट्टी के बर्तन।
इतने अच्छे म्यूजियम देखने के बाद हम लौट चले। उस रोज वुल्फ आइलैंड से लौटते समय तो एक और तमाशा हो गया था। रुपाई ने कहा था – डेढ़ बजे की फेरी है। जल्दी जल्दी वहाँ पहुँचे तो पता चला सवा एक बजे जहाज चल चुका है। अगली फेरी ढाई बजे। चलो कर लो इंतजार। एक घंटा हाथ पर हाथ धरे बैठे रहो। ऊपर चिलचिलाती धूप। पेट में छछूंदर का तहलका। डन बैठकी। रुपाई के मुखमंडल पर दार्शनिक चिंतन के मेघ। मैं श्रीमती के कान में भुनभुनाता हूँ,‘ये लोग आसानी से खाने पीने का सामान साथ ला सकते थे। मगर सब केवल डरते हैं कि भोजन साथ ले जाना अनुमोदित है कि नहीं। अरे भाई अंदर न ले जाने देते तो वहीं बैठे गपर गपर खा लेते, और क्या?’
मिजाज का उतार चढ़ाव देखने से अच्छा है कि हम चलें लहरों की उछल कूद देखें। मैं, झूम और उसकी माँ जेटी के पास टहलने लगे। रुपाई कार को इंतजार करनेवालों की लाइन में लगा कर उसी में बैठा रहा। बाहर धूप, पर भीतर कुछ ठंडा। वहाँ और दो एक सैलानी टहल रहे हैं। एक कोरियन लड़की ने हमारी फोटो खींच दी। हमने मुस्कुराते हुए कहा,‘थैंक्यू !’
जहाज जहाँ लगता है वहाँ जेटी पर लिखा है एमर्जेन्सी एव्याकुएशन (अंग्रेजी) या ‘एव्याकुएशन द्य अरजेन्स’(फ्रेंच)। फ्रांसीसी का मजा देखिए – फारसी अरबी की तरह – ‘जन्नत की राह’ के लिए ‘राहे जन्नत’!
यहाँ की घड़िओं की बैटरी कभी खतम नहीं होती है क्या? वाह रे वक्त की पाबंदी। ठीक 2.20 पर जहाज का आगमन। दूर से उसका भोंप सुनाई पड़ा। जेटी पर लगते ही उधर के यात्री इस पार उतर रहे हैं। फिर हमारी पारी। चढ़ने लगे। एक के बाद एक गाड़ियाँ। सामने साईकिल सँभाले हुए खड़े हैं बच्चे, बूढ़े, बुढ़िया। यहाँ उम्रदराज महिलायें भी मन की मलिका होती हैं। फेशियल करवा रही हैं, तरह तरह के नेल पॉलिश लगा रही हैं, टैटू करवा रही हैं, साईकिल लेकर वुल्फ आइलैंड घूमने आई हैं। और हमारे यहाँ ?-‘अब का होई बचवा? जिनगी में का धरल हौ? पता नाहीं भगवान हम्में काँहे नांही बुला ले थउअन कि यहू दिन देखे के पड़ थौ!’ फिर बहू बेटे की समालोचना या परम बेचारे भगवान को कोसना।
और वक्त की पाबंदी? महाशय, जरा सोचिए हमारे ही देश में दक्षिण में अगर कोई ट्रेन 3.20 पर छूटती है तो वह 3.30 भी नहीं होता। क्यों और कैसे? मगर हमारे इलाके में? ‘अरे भइया, दू तीन घंटा लेट कौनो लेट हौ? अगर उ टरेन आता (‘आती’ नहीं) ही नहीं, तो आप का उखाड़ लेते? अरे कितनी बार तो सिंगल (सिग्नल) डाउने नहीं होता। जल्दी बाजी में कहीं एक्सिडेंटे हो जाए तो सीधे घर नहीं जमलोक पहुँच जाइयेगा।’ प्रवचन सुधा सुनिए।
बारंबार मैं अपने देश की बात क्यों इस भ्रमण कथा में लिख रहा हूँ ? मैं अगर किसी दूसरे की माँ को देखूँ कि वह सुंदर बनारसी पहन रक्खी हैं, उनके गले में हाथां में सोने के सुंदर गहने हैं और मेरी माँ तो बस फटी साड़ी में ही घूम रही हैं, तो मेरे मन में टीस नहीं होगी? इतना सुंदर होते हुए भी मेरा मादरे वतन इतना असुंदर क्यों है? हम उसके लिए कर क्या रहे हैं?
हम लौट चले हैं। अब जरा इस राजमार्ग की यातायात व्यवस्था को ही देख लीजिए। सन् 2014 में हमारे देश में कुल 4.89.400 सड़क हादसे हुए। शहरी क्षेत्र में 2.26.415 और ग्रामीण क्षेत्र में 2.62.985 और मौत ? 56.663 शहरी क्षेत्र में तथा 83.008 ग्रामीण क्षेत्र में।(अमर उजाला. 21.9.15) यानी वहाँ गाँववाले ही ज्यादा हादसों के शिकार होते हैं। पर यहाँ की सड़क देखिए और यहाँ की रफ्तार। एक भी कार-कंकाल आपको सड़क किनारे पड़े नहीं मिलेंगे। कोई फालतू में भों पों घों घों करके ठकुरई नहीं जताता। मैं ने तो एक बार रुपाई से पूछ ही बैठा,‘अरे बेटे, यहाँ की सभी कारें गूँगी हैं क्या?’
एक महीने तक हमने कोई हार्न नहीं सुना। यह अतिशयोक्ति नहीं, मादरे वतन की कसम!
किंग्सटन के आस पास पर्थरोड और बेडफोर्ड मिल्स दो भूतहा गांव है। यानी उन्हें कुछ लोगों के बसने के लिए बनाया तो गया था। मगर कोई वहाँ पहुँचा नहीं। अरे साहब, हमारे देश से कुछ आबादी लेते क्यों नहीं आते?
फिर एक सुबह कन्या जामाता ले चले मैलोरी टाउन लैंडिंग। वही जल जंगल और जमीन की दास्तान। वहाँ सेंट लॉरेन्स आइलैंड पार्क में दिन भर तफरीह कीजिए। वहाँ के म्यूजियम में वहाँ पाये जाने वाले कीड़े मकौड़े और तितलियां अल्मारी में रखे हुए हैं। क्या रंग है! ‘बीट्ल’ जाति के कीड़ों के तो अद्भुत रंग होते हैं। लगता है वे अँगूठी में लगाने वाले नगीने हों।
वहीं मेज पर जंगल के बारे में किताबें भी रक्खी हुई हैं। एक शिक्षा – कभी ग्रिजली बीअर से अगर आप की भेंट हो तो जोर शोर से चिल्लाइयेगा। मगर बबुआ, उस विशालकाय दीर्घरोमा को देख कर कंठ से आवाज निकलेगी तभी न आप चिल्लाइयेगा ?
आगे जाकर नदी के पानी में पैर डुबो कर हम बैठे रहे। मैं पत्थर पर लेटे लेटे देख रहा था – कैसे आकाश की नीलिमा पिघल पिघल कर झील के पानी में समा जा रही थी। धरती की छाती पर जल और व्योम का यह कैसा सेतु बंधन है! लहरें खिलखिला रही हैं, परिंदे पूछ रहे हैं, मैं तो बस देखे जा रहा हूँ ……..
वापसी में झील पर एक और सेतु बंधन देखा। अगल बगल दो छोटे छोटे द्वीप। दोनों पर बस एक एक कॉटेज। और दोनों को जोड़ते हुए छोटा सा पुल। सड़क से देखने पर लगता मानो कोई खिलौनों का संसार रमा बसा है।
घर लौटते लौटते रात काफी हो गई। रुपाई ने सास से कहा,‘ माँ, अब घर पहुँचकर खाना वाना क्या बनाना? रास्ते से ही कुछ लेते चलें।’
किंग्सटन का ही एक मोहल्ला है पोर्टसमाउथ। वहाँ पहुँचकर कार सुस्ताने लगी। यहाँ सामने असंख्य नावें रखी हुई हैं। यहाँ उनसे ट्रेनिंग दी जाती है और स्पोर्टस की तैयारी होती है। वहीं एक चीनी परिवार कैस डेलाइट रेस्टूरेंट चलाता है। रुपाई सीढ़ी से चढ़ गया। एक बच्चा कुर्सी पर बैठकर अपने दादाजी के साथ कैरम खेल रहा था। उसकी माँ ने आर्डर लिया। थोड़ी देर में दो गरमा गरम पैकेट लेकर हम घर पहुँचे। अजी धीरज की परीक्षा मत लो। चलो लगाओ प्लेट। मगर एक बनारसी हाथ मुँह धोये बिना भोजन को हाथ कैसे लगाये ?
मेनू में क्या क्या नाम है बाबा ! चिकन विथ जिंजर सैलाड। जेनरल ताओं चिकन। साथ में फॉर्चून कूकी। खाने के बाद झूम ने एक कूकी मेरी तरफ बढ़ा दी,‘बाबा, जरा इस रैपर को खोलकर कूकी खाओ।’
मैं ने बिटिया आज्ञा का पालन किया।
‘अब उसमें क्या लिखा है, देखो।’
अरे हाँ ! उस रैपर के अंदर तो कुछ बातें लिखी हैं।
‘इसमें आपके बारे में कुछ लिखा होता है। शायद आपके जीवन के लिए दिशा निर्देश भी हो!’
मैं पढ़ रहा था -‘तुम में सारी दुनिया जीतने की ताकत है। मगर अतीत के बारे में सोचा न करो। बस भविष्य के सुनहरे स्वप्नों को देखो। और तुम्हारे शुभ नम्बर हैं – 3, 5, 55, 15…’… ऐसा ही कुछ…
चारों ओर की हताशा में फँसा इंसान कह उठता है,‘अरे ये लोग कैसे सच सच सब बता देते हैं?’
© डॉ. अमिताभ शंकर राय चौधरी
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