सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ लघुकथा ☆ “सेलीब्रेशन…” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

प्रीतेश ,साढ़े तीन सौ का फेंग शुई वाला “लकी बाम्बू” लेकर आया। वह पक्का वामपंथी है पर —- मानव मन की थाह पाना इतना आसान भी नहीं।

घर आते ही उसने ज़िन्दगी का फलसफा समझाने वाला वीडिओ देखा। उसे देख सुनकर उसकी आँखें भर आईं। जिसमें एक हताश व्यक्ति को उसका मेन्टोर बाम्बू के प्रतीक से समझा रहा था। बांबू को पाँच वर्ष तक लगातार खाद पानी देना होता है। उम्मीद का कोई चेहरा नज़र नहीं आता फिर देखते ही देखते वह छः सप्ताह में नब्बे फीट बढ़ जाता है।

कामयाबी बड़ा ही करिश्माई जुमला है। लोग सतह के नीचे की कारीगरी याद नहीं रखते। सिर्फ छः सप्ताह याद रखते हैं। हमें पूरी ईमानदारी से काम करते रहना चाहिए।

प्रीतेश को सहसा ओशो कम्यून याद आ गया। उसने पत्नी मीता से कहा- पता है तुम्हें बांबू की जिन्दगी में सिर्फ एक बार फूल आते है, फूल आते ही वह मर जाता है ।

“नियति” —- मीता ने उदास होकर कहा।

—- “मुझे लगता है फूल यानी रंग, सौंदर्य और सार्थकता–“! उन लोगों की तरह जिन्हें मृत्यु के निकट पहुंचने पर सफलता मिलती है———–

यह प्रीतेश का स्वर था।

—– “हां इसे दूसरी तरह से कहना हो तो ये भी कह सकते हैं —– बहुत संभव है बाँस अपनी मौत को सेलीब्रेट करना चाहता हो।”

प्रीतेश मीता को एकटक देखता ही रह गया।।

****

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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