सुरेश पटवा
(विगत सफरनामा -नर्मदा यात्रा प्रथम चरण के अंतर्गत हमने श्री सुरेश पटवा जी की कलम से हमने ई-अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा किया था। इस यात्रा की अगली कड़ी में हम श्री सुरेश पटवा जी और उनके साथियों द्वारा भेजे गए ब्लॉग पोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। इस श्रंखला में आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ रहे होंगे।
इस बार हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। श्री सुरेश पटवा जी और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। निश्चित ही आपको नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। आज प्रस्तुत है नर्मदा यात्रा द्वितीय चरण में गंगई से ब्रह्म घाट का यात्रा वृत्तांत। )
☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #4 – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆
हम सभी लोगों की परिक्रमा किसी मन्नत या जन्नत की लालसा से नहीं की जा रही है अपितु यह हिंदू जिज्ञासुओं की एक सांस्कृतिक परिक्रमा है जिसका उद्देश्य परिक्रमा की भावना, क्षेत्र, विस्तार और लक्ष्य की सीधी जानकारी संग्रहित करना है ताकि उन्हें संहिताबद्ध किया जा सके।
(नर्मदा यात्रा द्वितीय चरण का शुभारम्भ – तीसरा दिवस)
शाहपुरा के मनकेडी गाँव से दो व्यक्तियों ने आज विधिवत अखंड परिक्रमा ऊठाई है। एक की बेटी का हाथ बंदर ने चबा लिया था उसे डाक्टर ठीक न कर सके नर्मदा मैया ने दर्शन देकर उसे आशीर्वाद दिया और बेटी का हाथ ठीक हो गया। दूसरे ने घरेलू वाद-विवाद से मुक्ति हेतु परिक्रमा व्रत लिया है। वे भिक्षा में सीधा लेकर भोजन बनाते हैं और अतिरिक्त सामग्री दान कर देते हैं। प्रतिदिन पाँच घर भिक्षा माँगते हैं। समान्यत: लोग पाप मुक्ति, मान्यता या स्वर्ग कामना से परिक्रमा करते है। बिना किसी कामना के बहुत कम लोग इस अत्यंत दुरुह यात्रा पर निकलते है।
सनातन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नर्मदा के अमरकण्टक से नेमावर के बहाव को देवी नर्मदा की देह का ऊपर का हिस्सा माना जाता है, तदानुसार नेमावर नाभिकुंड है। नेमावर को विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्मस्थान माना जाता है। इसका मतलब हुआ कि ऋषि जमदग्नि और रेणुका का आश्रम नेमावर में रहा होगा। भृगु, मार्कंडे, वशिष्ठ, कौंडिल्य, पिप्पल, कर्दम, सनत्कुमार अत्रि नचिकेता, कश्यप, कपिल जैसे अनेकों सनातन ऋषियों के आश्रम जबलपुर के भेड़ाघाट से नेमावर के बीच रहे हैं जहाँ वेदों का पठन-पाठन, उपनिषद, अरण्यकों, ब्राह्मण ग्रंथों और पुराणों के साथ स्मृतियों का लेखन कार्य उन ऋषि आश्रमों में हुआ है।
आर्य-अनार्य सिद्धांत को ठीक माने तो आर्यों के आगमन के बाद से अनार्य याने असुर विन्ध्याचल और सतपुडा पर्वतों के बीच सघन जंगलों में प्रवाहित सदानीरा नर्मदा के किनारों बस गए थे। उत्तर भारत का इलाक़ा उन्होंने आर्यों के लिए छोड़ दिया था। नरसिंहपुर के नृसिंह मंदिर में भगवान नरसिंह की मूर्ति प्रह्लाद ने स्थापित की थी। इसी क्षेत्र में हिरण्यकश्यप का राज्य था, शोणितपुर अर्थात वर्तमान सोहागपुर में प्रह्लाद की एक बहन के पुत्र बाणासुर की राजधानी थी। देवासुर संग्राम के पूर्व देवताओं ने ब्रह्मकुण्ड में शिव आराधना की थी। गराडू घाट पर गरूँड़ पर गरूँड़ ने युद्ध काल में तपस्या की थी। नर्मदा की परिक्रमा में इन सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा हो जाती है।
जयचंद विद्यालंकार के कालबद्ध पौराणिक इतिहास लेखन के बाद से पौराणिक साहित्य को हिंदुओं का ऐतिहासिक साहित्य माना जाने लगा है। नर्मदा घाटी का भेड़ाघाट से नेमावर का क्षेत्र देव-असुर संग्राम का साक्षी रहा है। 08.11.2019 गंगई से ब्रह्म घाट
तक की अबतक की सबसे दुरुह पदयात्रा की। रास्ता बहुत ख़राब कही कीचड़, कहीं नुकीले पत्थर और कहीं रेत के अलावा कटे किनारे जानलेवा हो सकते थे। सुबह आठ बजे आश्रम के स्वामी धुरंधर बाबा से विदा लेकर नर्मदा किनारे-किनारे चल पड़े। क़रीबन तीन किलोमीटर चलकर मुआर घाट पहुँचे, मान्यता है कि दुर्गा देवी ने भेंसासुर का वध इसी घाट पर किया था। उस दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की ग्यारस थी और आज भी वही ग्यारस पड़ी। घाट पर स्नान चल रहा था, हम सभी ने भी स्नान किए और जो कुछ चना-चबैना था उसे ग्रहण किया। घाट पर चार व्यक्ति अखंड परिक्रमा उठा रहे थे उनके परिजन उन्हें छोड़ने आए थे। आज कई लोग दोनों किनारे के घाटों से परिक्रमा उठा रहे थे शाम के चार बजे तक सफ़ेद कपड़ों में क़तारबद्ध होकर परिक्रमा वासी चल पड़े, नर्मदा के सौंदर्य में चार चाँद लग गए।
ब्रह्म घाट पर एक 93 वर्षीय बुज़ुर्ग लक्वाग्रस्त पत्नी सहित मिले, वे बड़ी आत्मीयता से पत्नी सेवा में रत हैं। उनके दालान ने ठिकाना जमाया, वे भोजन सामग्री देने को तत्पर थे बनाना हमें था परंतु थकान से शरीर टूट रहे थे। एक पंडित जी के घर से तीस रोटी और आलू की सब्ज़ी का ठेका तीन सौ रुपयों में तय हुआ और सुबह से ख़ाली पेट भर गए।
(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)