श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “चश्मे मुहब्बत सजाए …”।)
ग़ज़ल # 46 – “चश्मे मुहब्बत सजाए …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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बहुत पापड़ बेले हैं ऐसे ही तेरे सनम नहीं हुए
हमारी खोपड़ी पर बाल बेवजह कम नहीं हुए।
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उस्तादों के ख़ूब नाज़ उठाए और गालियाँ खाईं
फ़क्त रियाज़ करके बलिश्त दमख़म नहीं हुए।
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हम तक आते-आते खुट जाती उनकी बख़्शीश,
हौसले इम्तिहान के फिर भी कम नहीं हुए।
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चश्मे मुहब्बत सजाए इन रहे हसीन वादियों में,
लद्दाख़ के वीरान पहाड़ों से तेरे बलम नहीं हुए।
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मुहब्बत में हर दम बेचैनी बेसबब नहीं है ‘आतिश’
रूह भटकेगी जब तलक मशवरे बाहम नहीं हुए।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बेहतरीन l सारे अशआर मीटर में है l जिसे संगीत का थोड़ा सा भी ज्ञान हो इसकी उम्दा धुन बना देगा l शुभकामनाएं