श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “वो जो चले गए और भी याद आने लगे …”।)
ग़ज़ल # 47 – “वो जो चले गए और भी याद आने लगे…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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भूलता नहीं शमशान का ख़ौफ़नाक मंजर भुलाने से,
वो जो चले गए और भी याद आने लगे भुलाने से।
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कमरा वीराँ हो गया, फ़क़त इक तस्वीर हटाने से,
दिल आबाद कहाँ रह पाया, उनकी याद भुलाने से।
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घुट-घुट कर मरना लिखा था उनकी क़िस्मत में,
अब कहाँ लौट कर आएँगे वे बदनसीब बुलाने से।
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हर शहर हर गाँव हर नगर में हाहाकर मच रहा,
एम्बुलेंस डॉक्टर दवा कोई नहीं आया बुलाने से।
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भ्रष्टाचार कालाबाज़ारी खेला खुलेआम नंगा नाच,
अखंड राष्ट्र विश्वगुरु ठेकेदार सहमे कुलबुलाने से।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈