श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “अजब हो चला इस ज़माने का चलन…”।)
ग़ज़ल # 59 – “अजब हो चला इस ज़माने का चलन…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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लँगड़े पर दौड़ने का आरोप लगाते हैं,
गंजे को कंघी का तोहफ़ा भिजवाते हैं।
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अजब हो चला इस ज़माने का चलन,
अंधों को नज़रों के चश्मे लगवाते हैं।
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तिजोरी पूरी चुनावी अभियान में झोंकी,
नेता जी बजट रिश्वत का बनवाते हैं।
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नदियों पर क्रूज अभियान हो ज़रा तेज,
हज़ार करोड़ गंगा सफ़ाई पर लगाते हैं।
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सौ स्मार्ट सिटी का लक्ष्य सध रहा है,
शहर की गंदगी गाँव में फिकवाते हैं।
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उल्टा सीधा खाने से किडनी हुई ख़राब,
आयुष्मान से दिल का इलाज कराते हैं।
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हिंदू हिंदी और हिंदुस्तान के नारे लगवा,
गाँव में अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल खुलाते हैं।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈