श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “लोगों को जोड़ सके वो मेहरबान चाहिए…”)

? ग़ज़ल # 61 – “लोगों को जोड़ सके वो मेहरबान चाहिए…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मुझे न कट्टर हिंदू न मुसलमान चाहिए,

उदार हिंदू और उदार मुसलमान चाहिए।

नफ़रत भरे दिलों में खिलता कँटीला खार,

मुझे प्यार भरे गुलों का गुलिस्तान चाहिए।

उतार कर फेंको धर्मों का अहंकारी नक़ाब,

मुझे सभ्य समानता का संविधान चाहिए।

जो हो चुका वो बदलने वाला नहीं अब,

नहीं काल्पनिक अखंड हिंदुस्तान चाहिए।

आपस में लड़े तो मारे जाएँगे हम सभी,

लोगों को जोड़ सके वो मेहरबान चाहिए।

नफ़रती पौधों की नर्सरी में खिलते काँटे,

काँटों में फूल उगा दे वो क़द्रदान चाहिए।

न हों आबाद खार ओ खस की महफ़िलें,

दिलों में गीत ग़ज़ल का अरमान चाहिए।

अंगड़ाई लें राम रहीम के दोआबी तराने,

ख़ंजर जिसे प्यारे नहीं वो शैतान चाहिए।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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