श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्रेयस साहित्य # ४ ☆
☆ कथा कहानी ☆ ~ बाप-बेटा – भूख और मौत ~ ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆
खेत में काम करते-करते करीब तीन बज गए थे। सूरज भी यह देखकर हैरान था कि यह आदमी है या दानव। बिना कुछ खाए पिये, सुबह से लगा तो शाम तक लगा ही रह गया। रोटी तो दूर, एक गिलास पानी भी उसे अभी तक नसीब नही हुआ था। ऐसा बिल्कुल नही था कि दीनानाथ को भूख प्यास नही लगी थी। दीनानाथ को जोर की भूख के साथ साथ प्यास भी लगी थी। लेकिन उनका बेटा किशन, यदि अपनी जिद्द पर अड़ा तो अड़ा ही रह गया। अपने बाबूजी को खेत में खाना – पानी लेकर नही गया तो नही गया। किशन की माँ गिडगिड़ाते गिडगिड़ाते थक गयी, लेकिन किशन को क्या, उसको तो अपने मित्रों के साथ कहीं और जाना था, तो जाना था, उसके लिये यह बात बिल्कुल सामान्य बात थी।
थक हार कर सुरसतिया खाना लेकर खेत में पहुंची, तो उसे दीनानाथ कहीं भी दिखाई नही दिए। लू के थपेड़ो ने दीनानाथ पर जो कहर बरपाना था, बरपा दिया था।
टूटे पेड़ की जड़ के नीचे ऐठे हुए दीनानाथ को अब धूप नही लग रही थी। क्योंकि उनके साँसों ने भी साथ छोड़ दिया था। सुरसतिया की चीख पुकार सुनकर गांव के लोग भाग कर खेत में आये और दीनानाथ को उठाकर घर ले आये।
घर पर बड़ी भीड़ लगी हुई थी। सुरसतिया का रो रो कर बुरा हाल था। लोगों के बीच से किसी की आवाज आयी कि यदि दीनानाथ को भूख से मरा घोषित करा दिया जाय तो पाँच लाख की सहायता राशि मिल जायेगी।
यह बात किशन के कानों तक पहुंची तो उसकी बेचैनी बढ़ गयी। गांव के लेखपाल पवन मौर्या कही दूर के नही रहने वाले थे। वे भी बगल के गांव नौताल के रहने वाले थे। दीनानाथ की मृत्यु की खबर सुनकर वे भी द्वार करने आये थे।
किशन के कान में भूख से मरने वाली बात गूँज रही थी। अब वह पवन लेखपाल के पीछे ही पड़ गया। साहब, कुछ ले देकर बस यही रिपोर्ट लगा दीजिए। मेरा बड़ा काम हो जाएगा।
गांव के कुछ नौजवान यह सब देख रहे थे। मनोज से जब नही रहा गया तो, उसने किशन पर चिल्लाते हुए कहा। अबे नालायक! पहले अपने बाबूजी के क्रिया – कर्म की तैयारी कर, उनका अंतिम संस्कार कर, फिर भूख से मरने और पैसे की बात करना -कराना। मनोज की बातों का कुछ भी असर किशन पर नही पड़ रहा था। वह तो अपने बाबूजी का पोस्टमार्टम करवाना चाहता था। क्योंकि भूख से मरने की पुष्टि तो पोस्टमार्टम में ही होती। पवन लेखपाल के मन में रह रह कर लालच आ रहा था, लेकिन उसकी चिंता यह थी की एस0 डी0 एम0 साहब तो इस बात पर कभी भी राजी नही होंगे, कि यह रिपोर्ट लगे कि दीनानाथ भूख से मर गया क्योंकि अब देश विकास की गति में आगे निकल चुका है। देश की सरकार हर एक नागरिक को राशन की दुकान से अन्न एवं अन्य सुविधा देने के लिये कृत संकल्पित है। पवन कई बार यह बात एस0 डी0 एम0 साहब के मुँह से सुन चुका था कि कोई ऐसा काम नही होना चाहिए जिससे सरकार की छवि को नुकसान हो। यह तो इस सरकार में भूख से मरने वाली बात है, जो बहुत बड़ी बात हुई। वैसे दीनानाथ का भी राशन कार्ड बना था और वह हर महीने राशन की दुकान से राशन उठाता था।
सुरसतिया को अच्छी तरह से पता था कि आज उसके पति दीनानाथ की मौत भूख प्यास से तो हुई है, लेकिन राशन की कमी से नहीं हुई है। इसलिए वह ऐसी रिपोर्ट लगवाने के पक्ष में बिल्कुल ही नहीं थी।
लेकिन दीनानाथ का एकलौता बेटा किशन अपने बाबूजी को भूख के कारण ही मरना सुनना चाह रहा था।
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© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”
लखनऊ, उप्र, (भारत )
दिनांक 22-02-2025
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈